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और इसके पश्चात कवि का काव्य चंपापुरी और कौशाम्बी की अमराइयों में डूबता हुआ जंतूस्वानकी को अपने उपदेश का विषय बनाता है वहा तक कि इन्हीं महापुरुषों के उत्कृष्ट आदर्शो और चारित्रिक गुणों से वह हृदय के समस्त मनोबल को उभारना तथा जीवननिर्माण कर दुष्प्रवृत्तियों का निराकरण कराना चाहता 1 चरित्र के की प्रतीक पुरुष स्थूलभद्र का चरित्र उठाने वाले गुरु वचनों की काव्यात्मक महिमा देखिए:
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विवाद र सविन निर पुरारि समरजि
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ये बीमार
मस्त मडी पीठ बाम मानव जीवन को या उठावा है तथा मानवता का पालन करना सलवार की चार में धानो हैऔर जीवन को स्वस्थ दृष्टिकोण और
की और माहि करने वाला वही काव्य
में कविता है जो मानव जीवन
के बाहर बम बमको करके चला है। प्रस्तुत सध्यय का निर्माता कवि जनता का
का है। और वास्तव में चरित्रं विना