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________________ ७३० हा मातृका इसी कवि पदम की एक दूसरी इसी प्रकार की रचना दूहा मातुका है। यह रचना कक्क ब भातुका शिल्प की दृष्टि से सालिमदद कक्क से भिन्न है। इसमें कवि ने परम्परानुसार ओंकार से प्रारम्भ करके व तक वर्णन किया है। रचना छोटी परन्तु सरस और आलंकारिक है।अनेक दृष्टान्तों को कवि ने माला की भाति पिरो दिया है। कवि ने अक्षरमाला का क्रम इस प्रकार रस्सा है:. ॐ नमो सिन्ध - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, रि, री, लि, ली, ए, ऐ, ओ, और, , , क, ख, ग, घ, ड०, च, छ, ज, म . ट, ठ, ड, ब, प, ब, थ, द, ध, न, प, फ, ब, , म, ज (य), र, ल, व, स(ज), स. कवि ने ड०वि को नवि और को नह के रूप में रखा है। के स्थान पर कवि ने बत्य सका ही प्रयोग किया है। कृति की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सरसता और आतंकारिक्ता अपयश गत काव्य सौन्दर्य इसमें ज्यों का त्यों परिलक्षित होता है। काव्य में चमत्कार सर्वत्र विद्यमान है। कवि ने इसे धर्म मातृका नाम भी दिया है। पूरा काव्य दोहा छेदों में लिखा गया है।कवि ने रचना का प्रारम्भ जगत गुरु प्रणाम में ही क्यिा : कारिणी उच्चरर, पर मिटिगी भवकास सिब मंगल सापकरो, वाइवि नाल्यास संसार की नश्वरता, मन को सिवान, विषय कसायों सेबचने को संयमत्री का महत्व स्था सांसारिक सुख वैभव विकास की नीरसता सम्बन्धी कुछ उम्टाम्ब का काव्यात्मक सरस स्थलों और भावपूर्ण नियों को देखिए(1) बवा परिका दोष परामा मूढ मिव बोल पा बरिस, बवि कारिस मूढ (७) - - - १- प्राचीन और गन्य मा श्री काल ०६७।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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