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सालिपद्र कक्क।
कवि पदम विरचित एक सुन्दर कृति सालिमा कक्क उपलब्ध होती है। जो अद्यावधि उपलब्ध कक्क मातृका संज्ञक काव्यों में उत्कृष्ट रचना है। प्रस्तुत कृति ने अब तक प्राप्त लगमग रचनाओं से यह शिल्प गत भौर वस्तुगत नवीनता प्रस्तुत की है। शिल्प गत वैभिन्मय से तात्पर्य रचना की मक्क पद्धति से है। कवि ने स्वर व्यंजन का क्रमशः वर्णन नहीं कियाहै। इसमें प्रत्येक व्यंजन को दो दो बार अकार आकार लगा लगा कर लिखा है।साथ ही कोई भी स्वर वर्णन पद्धति में ग्रहण नहीं किया गया। यथा क का, ससा, ग गा, घ घा .... आदि पद्धति से पूरा काव्य लिया है। दोनों और स एक ही स सा में चले है।
रचनाकार पड्म का समय निश्चित नहीं मिलता परन्तु भाषा और अन्तरंग प्रमानों के आधार पर सं० १६५८ के आस पास ही निश्चित कियागया है। क्योंकि या रचना जिनप्रम की रचनाओं के साथ लिखी मिलती है।' पूरा काव्य वेदोहा छन्दों में लिखा गया है। रखना श्री दलाल के संग्रा में प्रकाशित है।
___रचना का क्या शिल्प काव्यात्मक है।पूरी रचना में शालिमा अपनी माता को संसार को छोड़ने का उपदेश देश मा रमे संयम और वैराय की विसिवा पूर्ण स्थितियों को बनाती है परन्तु उसका मु इयों से उत्तर ३ देखा है और न मा को उसे दीक्षा का आदेश देना पड़ता है। पारिभद्र बतही सरस दृष्टान्द्रों और बबाहरणों मे मा को सष्ट करता है और जीवन की मिस्सारखा समाता है। पूरा काम्ब उत्तर प्रत्युत्तर बेली में लिया गया है। पालिमा और उसकी भी पारस्परिक प्रश्नोत्तरों में कवि ने कर्म, सार, जीब, मत्व, कलादिमी का सुन्दर मिलेकन क्यिा है।बस्तु पूरे काव्य को संवादकाय कहा जा सकया।
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१. प्राचीन वर्ष सम्म
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