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एह जणे विण ला लिया
निय विढत्यु घप धम्मि दिउ पूरी कृत्ति धर्म प्रचार की दृष्टि से लिखी गई है।रचना में अपक्ष के शब्दों का प्रभाव स्पष्ट लक्षित है परन्तु अधिकाश वत्सम तथा राजस्थानी है।
अन्त में कषि मंगल गान करता है तथा रचना का श्रावकों के लिए रचने का अपना मंसव्य स्पष्ट करता है:.
मंगल महासिरि सर संधु, जसु भाष देवह अलंड उवसमि स संवेगिहि रची, बहुयाली साबय मुणि रसि