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(२) इणि संसारि दूष मंडारी, लइन जीवकाय धम गारि
वीत रागि चं आगमि कहीउ, करेता जियण मावन सहीउ जोइड आगम तफल विचार पाच्छइ भारिन परत भंडारु उप्पल दस उपरि जिम नीक से उंचा जीव सरी उपर सिवे भावनानीरि वासरु नोही जिम बाहरइ सीरि सुगुरनी जान विलगीकरी, जान जीव पव साडसतरी
अंतु न लामई इह संसार काई तु जीव हिइन विचार (८-१५) अनुप्रास का निर्वाह देखिये:(३) परि पर हिंडिसि जीव अपाहु
जड़ न नमिति जिनु विडूअल नाइ जिन धम् विणू सा नहीं संसारि,
अवर रमालि दीस मन हारि (४) जग गुरु जग रमण जग नाहु
जग बंधन जग सथवा जग वारण जिउ जग आधार
जिप विधु भरि नहीं भव पास (10 (1) थर थर पई कायर रिस्त, देवीर भूमिवर मात
पीरा सत्व जै जाप, पालई बीच सीर जिन भाव (1) महानि मारई ते अमि दूर वे मारीयई महानि के भूर पीरा गुमट खस्टबह भारीर मा ना नीबई में कविरा बाय की पाति गरमान करके कति समाप्त करता है:मंगा र विपरित
मई मिली * विविध करि उबकाय