________________
७२३
मंगल कर साडुना पाय
जा ससि सूरु भूयषु व्याप्पति
जा ग्रह नक्षत्र तारा हुंति
जा वरतइ वसुह व्यापाक
ती सिव लच्कि करउ मंगलाचारू
इस रचना के शब्दों में तत्समता स्पष्ट परिलक्षित होती है- महिमा, नाना विधि, जिनभवन रूप पक्ष पुस्तक क्षेत्र मूर्ति प्रसाद आदि अनेक शब्द है। पूरी कृति साधारण है और जन भाषा का एक नीतिपूर्ण उपदेश प्रधान काव्य है।