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________________ : मातृका: ७२१ मातृका चउपड़ -: ****** यह रचना प्रकाशित है। कृति का रचनाकार अज्ञात है। इसी की समकालीन एक रचना सम्यक्षेत्री राख्न मिलती है। दोनों कृतियों के आदि अन्त में पर्याप्त साम्य है अतः यह कहा जा सकता है कि संभवत: दोनों कृतियां एक ही लेखक की रही होंगी। सप्तक्षेत्री राहु और मातृका पs का परस्पर साम्य देखिए: सप्तक्षेत्री सवि अरिहंत नमेवी, सिद्धरि उनकाय पनर कर्म भूमि साडू तीइ पणमिय पाय सवि अरिहंत नमिवि सिद्ध सूरि उवज्झाय साडू गुण मूरि इसी प्रकार अन्त में भी पर्याप्त साम्य है। पूरी रचना चउपर छंद में है। रचना कक्क पद्धति या शैली में लिखी गई है। मातृका इसका मूल अक्षर है। हर एक मूलार से पद्म प्रारम्भ होकर क्ष तक गया है। इस रचना में नहीं है तथा ड०.जल की राजस्थानी रूप को कवि ने मान्यता दी है। ॐ नमो सिदूध से लेकर पूरी ६४ छंदों में लिखी गई है। मातृका चब भी व गाई बल की भांति नीति और उपदेश प्रधान है जिसमें कवि ने कर्मवाद के सिद्धान्त पर संसार की नश्वरता, मन की चंचलता एवं महों के जीवन जादि पर प्रकाश डाला है। रचना की भाषा वीर नाकारिकता तथा काव्यात्मकता के कुछ स्थल देखिए: (१) मन चंचल जे अविच करई, जिरह आप सिर ऊपर इम कसाय उदीय अंबरई, ते सिव नबरि ति संचर १- प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह- ०७४ - आपना कवियो : श्री के का० शास्त्री पृ० १८७ १८९ ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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