________________
७२०
(७) मनु मयगल अम ध्यानकर ति, प्रसन्न चंद जिमसिधिहि जति (c) धन जि गुरु पारकर करति गुरु विण समका किमइन इंति (९) अच्छइ मोह चरणु इमि समइ, समक्ति न रयण न लाभइ किमा (१०) विधि मारण मान अविवार, गाउं जइ छूट संसार (११) ओया वीसई बहुत गमार मह तभी न पूछई पार वस्तुत: उक्त उदाहरणों से रचना की सरसता और लोकप्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है।
१४वीं शताब्दी में इसी प्रकार की कई कृतियां मिलती है जो काव्यकी इष्टि से साधारण महत्व की है पर भाषा और कक्क मातुका शैली तथा छंदों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। ये कृतिया नीति प्रधान है तथा धर्म प्रचार के लिए ही लिखी गई है। वर्णमाला के ५२ अक्षरों का सम्यक् विनीड होने से इसरचना का नाम भातुका बावनी भी मिलता है।अत: मातृका बावनी व सम्बकत्व पाइ बाई दोनों एक ही रचना के दो पर्याय है। इस प्रकार सम्यक् दर्शन तत्य की प्रतीति, श्रद्ध, तथा वस्तु का सम्यक् बोध आदि सभी मो का दर्शन यह रका करती है। जैन धर्म के सिद्धान्तों का इन रचनाओं द्वारा पूरा पूरा प्रबार किया गया है। 'मिस्संदेह काम और धर्म दोनों ही इन्टियों में ऐसी रचनाचे महत्व पूर्ण है।
-