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कवि ने अपनी रचना में तालारासु और लकुटा रासु का भी उल्लेख किया है परन्तु स्त्रियों के लिए यह रास वर्जित किया गया है:- कवि ने इस संबन्ध मैं सप्तक्षेत्री रास का विरोध किया है। सप्तक्षेत्री रास (सं० १३२७) में दोनों राम आनन्द सूचक है पर जगडू दोनों का विरोध करता है:
सप्तक्षेत्री:
पीछे वाला रास पठइ बहुमाट पढ़ता
अन लकुटारस जीइई बेला नाचता
सुललित वाणी मधुरि सारि जिन गुण गार्यता बाल मामु छंद गीत बेल, वाजिव वाजता सम्यक्त्वमाई:
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ias fafe afafeडि जापति, मंदिर पठ निसिदिन करत वाला राहु रमणि कथन नहि देइ, उडा र मूलह वारेह वस्तुतः पूरी कृति में काव्यात्मक उत्कृष्टता नहीं है। कृति साधारण है तथा उपदेश व नीति प्रधान है।
भाषा की दृष्टि से इस कृति का महत्व स्पष्ट होता है। जगहू ने रचना को सुबोध और सरल बनाने के लिए इसमें अनेक लोकोक्तियों, मुक्तियों नीतिवाक्यों और उपमाओं का प्रयोग किया है। विकृति में काव्य कौल व रचना चमत्कार नहीं के बराबर है परन्तु कई सूक्तियां काव्य को लोकप्रिय व सरस बनाने में योग दीत है:
(१) वा कोहि मी पाछेह
(२) सहियं जगि लोढइ स कोड, कृपालु बिसहर वा होइ
बीमा
(३) उगम र
(४) गल जावु नि
(५) श्रमिक जइ लाइ संसार जाने हुरी पट्टी भंडार
(६) गुरु वानिता विसुठ सरेइ, सुगुरु वाणिक आम करे
प्राविव पात्र विसेविति त बिसु थिय
म किमइ गावडी भवि मवि लामह तिनह
तिमी, बी पालइ सो नर धीर