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इस रचना में कवि ने अ से ह तक मातृका वर्णन किया है। श्री मोहनलाल देसाई ने प्रस्तुत रचना को १५वीं शताब्दी की लिखी है? परन्तु वास्तव में पृथ्वी चंद के गुरु का समय सं० १२७८ है अतः इस कृति का रचना संवत् १३०० के पूर्व ही कहा जा सकता है।
रचना का प्रत्येक दोड़ा अपने में स्वतंत्र है। तथा मातृका के नियमों का frers किया गया है। अन्त में कृतिकार ने अपना नाम स्पष्ट कर दिया है। कुति की भाषा अपभ्रंश बहुला राजस्थानी है परन्तु अपभ्रंश का उत्तरवर्ती रूप स्पष्ट है । १२वीं शताब्दी की सभी रचनाओं में अपभ्रंश का प्रभाव इसी प्रकार मिलता है।
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: सम्यकत्वमाई चउपर :
१४वीं शताब्दी में सम्यक्त्व माई चापइ रचना प्राप्त होती है। रचनाकार जगदू है । कृति का रचनाकाल सं० २३३१ के पूर्व है। जगदू जिनेश्वरसूरि के शिष्य थे। कृति में कवि ने स्वयं अपना परिचय दिया है:
तासामिति चपई बंधु कियत, माइतणउ हेड मई नियउ
जगडू भणइ बंधु जयतु समेळ
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उपर आगला किंपि भ श्रीमंबर aser परि रद्द, गंव विहि मंदिर कवि क जिनेवर सूरि मिंड़ जा रवि उमड़ ऊगड रोड
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रचना में पूरी वर्णमाला स्वर व्यन्जन सहित वर्णित है प्रस्तुत कृति का रचना शिल्प ठीक वैसा ही है जैसा सं० १३२७ में रखे हुए एक सप्तदेवी राइ के लेखक की कृति मातृका पह का । यह भी बहुत सम्भव है दोनों कवि एक दूसरे से प्रभावित रहे हों। कवि ने काव्य में ६२, ६३ ६४वी कड़ियों में अपना परिचय दिया है। माइका कायर और सम्यक्त्व माइ बीच दोनों कृतियों के प्रारम्भ में ग्राम्य मिल जाता है।
१- बैग गर्न कवियो मोवाई ५० १४७७ भाग ३ बा० २ २०० का सी०डी००७८-८ ३- वही पद (६१-१३) ।