________________
७१७
सम्यक्त्व माई चउपर में कविने सम्यकत्व का मातृका शैली में विश्लेषण किया है। सम्यक्त्व माई कप में कवि जिनवचन को महत्व कम स्पष्ट करता है उसका उपदेश जन जीवन को सम्यकत्व द्वारा ही ऊपर उठाना स्पष्ट होता है। मातृका चढपर और सम्यक्रम माई चउचई दोनों की मूल भावनाओं का तत्वतः विरोध प्रारम्भ में ही देखा जा सकता है:
सम्यक्त्व- मले मई माई पुरि जोड धम्मद मूलज समित होइ
समतु विणु जो क्रिया करेइ ताराह लो हिमीक चोइ
wards लोहि नीरु घाइ से सम्यकत्व का महत्वकवि प्रस्तुत करना वाढता है जबकि माता बउवड में कवि इस आधार को नहीं मान जिन वचन पर ही जोर देता है:
भले भलेfor antas भ, तिहुयणं नाहि सारु एतां
जिन निज बचन जगह आधार इतीउ मूक्लि अवर अस्पारु
वस्तुतः दोनों कृतियोंका सैद्धान्तिक अन्तर पूर्णतया स्पष्ट है। रचनाकार ने
६४ कड़ियों में चरणइ छंद में पूरी सचना लिखी है। कवि ने ऊं से ही प्रारम्भ करके अ से लेकर 5 तक की वर्णमाला को पद्यों में बांधा है। काव्य की दृष्टि से रचना कोई महत्वपूर्ण नहीं है। पूरा काव्य उपदेश प्रधान है।कवि विविध इन्टान्तों और अंतर्कथाओं द्वारा उन धार्मिक सम्म जैनियों का धार्मिक सिव व वाचना की ऐसी स्थिति है जो अनेकों तक तप व विडिया द्वारा ही प्राप्त होती है। पूरे काव्य कवि इसी तरह दाम महिमा का वेद, पात्र कुपात्रका ईडरीक बजकुमार, खाने, बसरस्वामी जंबूस्वामी आदि की अन्तर्कथाओं द्वारा सम्यकत्व का महत्व स्पष्ट करता है। कविवान महिमा और पंच परमेश्वर तथा मात्र कुमान मेद प्रथा मम के मावि का स्वष्टीकरण नहीं ही सरल भाषा में है:
करता है
उदाहरण
मातका:
get मा चादह पुम्बद जो समुदूधक वाई कारबाही घड़ी हार गट काम पटे, पडिय माहि वाहने
इस प्यातु करहि प्रसम्म बंद जिम विधिजिंति (४)