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अधिक प्रभावित है परन्तु अनेक राजस्थानी शब्दों का आना अपभ्रंश की उत्तरवर्ती स्थिति का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करते है। रामसिंह शनि के ग्रन्थ पाहु दोहा की माति ही यह प्रन्ध उपदेश प्रधान है। कवि प्रारम्भ में ही रचना के रसविलास नाम के साथअपना नाम स्पष्ट कर देता है। रस का चित्रण करके कवि ने संसार की मेश्वरता कलियुग का प्रभाव आदि का स्पष्टीकरण किया है।
मालका प्रथमावर दोहा को कवि ने ओ ना सिथ नमो सियम के रूप में प्रारम्भ की है। माषा, भाव, प्रबार, रक्षमा बल तथा उपदेश व नीति मादि सभी इम्टियों से रचना के कुछ उदाहरण दिए जा रो है.
माई अक्सर पूरि परिवि वर दूजय देव रम विलास भारपिया पुरवि पुरवि देन
बंधोला पण बल्ल जिम जिम मुहब अंशु तिम तिम बोलमजि जिम, नवल मवन्तर रंगु
बासंधिया गिय वर्ष मण छंद वबहरह कवि ना मेही अपाय छ हगि हाधन पाविबड इच्छा बीमारि परि हो किम्य बाहिरि कार्ड अंगामि कहिया केलियामि बोएबीषणबाइ ईसक अब बाबा का विषय पर शामिल का अविवाहिन्लिा मा पालियात एि जिन विधि पारि पनि सबमरी कालिन मा परि विकस्विति मगइ रगबह पूरि मावत चित्तो लिपि दिन रविवा
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