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विषय विषधरों की चर्चा के पश्चात कवि ने बारह भावनाओं का भावन करने का उपदेश दिया है। पूरा काव्य संसार की नश्वरता, आवागमन के बंधन और मक वर्षन आदि में ही समाप्त हो जाता है। कुछ उत्कृष्ट उदाहरण देखिए:
ईय बारह भावण सुवण सुझावण, भषावि वजीवई परिणत
दुलहु मयत्तण धम्मपवित्तष दस दिविहि मरिसु कवि की भाषा का प्रवाह विविध दृष्टान्त्रों औरउवारों की सुबमा, शब्दो पित्व प्रधानता, धवन्यात्मकता तथा आलंकारिकता और नादि काव्य कौल इस्टव्य है। कुछ चुने हुए उदारम इस प्रकार है जिनमें जीव, कर्म ज्ञान, संसार व नरक के वर्णन है(1) जिम तुह मधु रविधा बिसय समृधिहि, 'तिम जइ मिनि होई जीय बा शिव उक्कणिय करयकठिन पुरनर मुह अगु अनि हय, सो धान कन्नड
बाहिद (२) (२) मजन करणे स्वत, पईमारिय निघण बंतु इंच
रोग मोग इह विदुर देड, अक्कासवि वचसि मुच्चगेहिं (२७) (३) आरम्भ करे बिणु जीव बिहेविण विविह वा हि किम सहसि बीय
सलसता संपई हिगड कंपड, का पडिशिद ढंभ कु () (४) सम्ममाहार नीहार कमवली, जुमन कुमास मीनार विम्बर
* निगमोषान्नुम पब मीडिवो, आमिरे जीव, बीववावरिपीडियो (1)
पतले और बड़ों का साथ बार की मयखा, और कर्म की स्थिति आदि जनका वर्णन करने के मधुर भन्यों में किया है। दो का प्रवाह बाकारिता माथि का वर्णन सम्टन (1) होम बोय गयो, बिटवासीय वगमो
बोगीकोनो मतो गाव म मन अकाली बठनों (4) भिवा पौकिय पति कोको, बानि मनि रयम हरियाल हय हिंगुली
कहा यन्मियो, सपर सत्येक शिकवेति थियो (७) मीर नीरव मिलबारेख बा. हा साप विम महुरेण
शिशिर उम्मेब महावि विसिव का पवन पवमेण निहिणिज्ज बलमवा।