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तप सन्धि- राज राजसूरि शिष्य
सिरि मोम सुन्दर गुरु पुरन्दर पाय पंक्य ईसओ सिरि-विसाल-राया गरिराया-बन्द गच्छ सो पय नमीय सीसई तासु सीसह अस सन्धि विनिम्मिमा सिव सुक्स कारण इह निवारण तव उपसिइ कम्मिमा
(पाटष मंडार)
उपदेश सन्धि- गाथा १४, हेमसार
उबऐस सन्धि निरमल बंधि, हेमसार इमरिसि करए
जो पढइपढावह मुहमपि भावइ बसुद्ध सिविध वृघि लाए अभय जैन ग्रन्थालय से उपलब्ध पक रचना शील मन्धि मिलती है। यह कृति भी अपमंत्र शब्द बहुला है परन्तु इसमें भी भाषागत परिवर्तन परिलवत होता है। इसमें कवि ने शीलवान पुरषों, देवियों और सती नारियोंका वर्णन कर उनको नमन दिया है। कुछ उदाहरण दृष्टव्य है:
विथवर चक्मियत बासुदेव पुर बयर निरिंदहि विडिय सेव भन्ने वि बियम शिरि निहाल, ग्रीव कप्पकाम जागि पंधि सुरनर अपर मोम बाम काल मय रोग बोम अखंड जीव माहिय सरीर, निक मुक्याला धीर
१- गुर्जर कमियो- मौन काल देखा नाम ...
- वही.. *• PATRA, बीगमेर-सं० १४१५ में सिमिच हटके से प्राप्त ।