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अतः इन कवियों ने एक संधि वाले इन मन्ड काव्यों को या प्रबन्धों में सम्धि नाम दिया है।
विषय के आधार पर विवेचन करने पर भी स्पष्ट होता है कि सन्धि काव्यों के वर्णय 'विश्य नहीं है इनमें से कोईभी विषय सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक, चारित्रियक आदि अने जा सकते है। असः साधारण रूप में सम्धि का स्वरूप एक सर्ग की ही भाति स्पष्ट होता है। ये काव्य अपने में पूरे होते है।
सन्धि काव्ययद्यपि आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य में अधिक संख्या में उपलब्ध नहीं होते है परन्तु यह शोध का अभाव ही कहा जा सकता है। भनेक जैन भंडार अभी बन्द पड़े है। वीं शताब्दी से ही सन्धि संज्ञक काव्य मिलते हैं जिनमें भावना संधि आनन्द प्रथमोपासक सन्धि, चील सन्धि, देवी गौतम सन्धि, तषसन्धि, उपदेन सन्धि का रंग सन्धि- आदि रखना है इनमें से तप सन्धि, उपदेश सन्धि, चउरंग सन्धि आदि में तो अपभ्रंश वब्दों कीबहुलता है उन्हें अपनेवर काव्यो में स्थान नहीं किया जा सकता। फिर भी इन काथ्यों के उदाहरणों में भाषा में विकास के अंकुर अवश्य परिलक्षित होते है। उन काव्यों के कुछ उदाहरण पृष्ठ भूमि के रूप में देश का सकते है। कामों में भी अधिक अपांच बाकी है। परन्तु सवीं शताब्दी की भावना सन्धि, सामन्य सन्धि और सीमीयम सन्धि प्राचीन हिन्दी के काम है जिन पर इम मागे विचार करेंगे। वही भूमि के म में कुछ अपांच बालमन्यि माव्यों के धरण है
अपमानि -मंडन इरिव किंग जग डन बिग सिविठिय
पि-काय रसायन शुगक कानुन पुगि सन्धि बिय बाय पाइपब मार पाणु बह-जीव-गाय विसयामिराम बीवियास्ट्रिकको बा-रोग-सोम दुइ जोय मेह (पाटन भंडार)