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सन्धि उस स्थान पर प्रयुक्त होती है। वस्तुतः इसका प्रारम्भ हेमन्द में ही मिलता है हेिमचन्द्र ने सन्धि को अपर मर्ग विभाजक शब्द का नाम दिया है।
पद्य प्रायः संस्कृत मावापभ्रंश ग्राम्य भाषा निबद्ध-भिन्नास्त्यवृत सगा रवास सन्ध्यवस्कबंध- सत्यधि बब्दार्थ -वैचित्र्योट महामाव्यम्- इस प्रकार इस सून से स्पष्ट होता है कि संस्कृत के महाकाव्यों का विभाजन सर्गों मैं, प्राकृत के महाकाव्यों का भारवासा में अवश के महाकाव्य इंथियों में और देशी भाषा के महाकाव्य अवस्कन्धों में विभक्त होते थे। इस प्रकार अब तक अपांड के महाकाव्यों में सन्धि बाद कड़वक, व्याणि, आवि सवों की पाति वर्ग विभाजन के लिए ही प्रयुक्त होता था। यही नहीं अपनवेतर काव्यों में भी यह सब्द मिलता है।
____ अपात्र में कड़वक समूहात्मक सन्धि अर्थात बहुत मे बड़वक मिलकर एक संधि की रचना करते थे। सन्धि काव्यों को हम कोई विशेष या विशेष कर सकते है। इन काव्यों में सन्धि किसी नड विशेष के लिए ही प्रयुक्त हुआ है। यो इन सन्धि काव्यों में कई काव्यों का विभाजन कडवकों में किया गया है परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि ऐसा हो ही। अनेक काव्यों में कड़वक नहीं ही मिलनेक अतः स्पष्ट है कि अयाज काव्य परम्परा में जिस प्रकार कड़वकों के समूहों के म में मर्म विभाजन
के न्धि का प्रयोग मिला। पुरानी हिदी में वही मद उसी वर्ष में प्रयुक्त है परन्तु रमागरों में पत्रिकाब देकर सन्डकाव्य की मांदि इन काम्यों की रमना मन से कर दी है। वस्तुतः मम इन्धि अब्द किसी धारा विशेष का इबोला न होकर अपच काव्यों की सन्धि काव्य परम्परा का निवाई करने वाला है। यह का वा सकता है कि सन्धि काव्य महाकाव्य के माँ बीमा सामान कई वन्धि कायों के द्वारा महाकाव्य का प्रभाव किया गया । प्रत्येक काव्य अपने में स्वतंत्र है।
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१० देखि रामवाली