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-संधिकाम्यठळकठठ
संधि काव्य नाम से अपप्रंश में कई रचनाएं उपलब्ध होती है। इसके पूर्व प्राकृत में सन्धि संज्ञक कोई रचना उपलब्ध नहीं होती। यह कहा जा सकता है कि संधि कायों की परम्परा का प्रारम्भ अपांश पापा से ही होता है बिधि नाम से कई बाई ध्यान में आ जाती है कि या तो संधि काव्य संक्रांति काल में लिखे गए काव्य होने या दो प्रान्तों की सीमा पर लिखे गए होंगे अथवा दो भाषाओं के सम्मेलन से निर्मित हुप होंगे। आदि आदि परन्तु वास्तव में ऐसी बात नहीं है। संधि को ईकाव्य रुप भी नहीं है। इसका कोईशास्त्रीय शिल्प भी अद्यावधि उपलब्ध नहीं होता पर फिर भी संधि संज्ञक रचनाएं मिलती है वस्तुतः इन संधि काव्यों में संचि उब्द का विशेषमहत्व है।
सन्धि द की परम्परा पर विचार करने पर इस वर्ग की रचनामों का स्वरूम स्पष्ट हो जाता है।बहुत सम्भव है कि इस काव्यों की पूर्ववर्ती परम्परा में दो भाषाओं का सम्मिलन अथवा अन्य कोई संगतिकालीन स्थिति रही हो पर इस सम्बन्ध में अब तक कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता। काव्य मों, कैलियों ज्या विभिन्न छन्दों की दृष्टि से विचार करने पर भी संधि न कोई विशेष काव्य काही है और न कोई विभिन्न ब विष ही। तथा कोई की विशेष भी नहीं है। ऐसी स्थिति में सन्धि का पारिभाषिक अमिधामूलक पर मंटोर करना
सम्धि शब्द अपात काव्यों में अधिक मिलता है। जिस प्रकार संस्कृत में वर्ग विभाजन मा अध्याय के अर्थ में सन्धि का स्पष्टीकरण होता है ठीक बैंक ही सम्धि वर्ग मिाजन के लिए अप काव्यों में प्रयुक्त होता है। बाधा अपक्ष के कईमहाकाय धियों विभक्त है। वह यह कहा जा सकता है कि संधि क्सिी विभाजित कर्म का माहो,या किसी बर्म का अथवा यह शब्द अध्याय का समानार्थ पोका मर्म अब समाप्त होता है और नये वर्ग का प्रारम्भ गिया जाता है तो