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नृप आयस लही वरवेक्षत्र रंगमणि कीघउ प्रवेस धा धा धा भार मुर्दम, चबम बचपट बाइ मुरंग संधुगनि घोंगनि धुंगा नादि, गाई नागड दोदो सादि मपधुनि र मपनि मन बीप, निनियुमि सपि भाउज लीप बाजी ओं ओं मंगल अंस, घिधिक्ट घंकट पाड असंख फागढ दिगि दिगि सिरि बालरी, गण गण पाउ मेरी दो दो दिहि सिविल रसाल धुण धार धमकार रिमि भिभि रिमि मिमि मिझिम साल, कररि ररि करिघटपटतात भरर मरर गिरि मेरिम साद पायडीउ बालवीउ नाद निसणी एवं विह बहुवाल मनि चमकी ते नवरंग बाल
माची अति धन उल्लट घरी राजकुमारि सोबासुंदरी (२०११) कवि के इन सब बर्मनों के अतिरिक्त बिरह वर्णन बड़ा मार्मिक बन पड़ा है। विप्रलंभ का वर्णन सोडगसुन्दरी विविध विलापों और वियोग सूचक उद्दीपनों से स्पष्ट करती है। श्रृंगार का यह 'वियोग पक्ष वर्णन की यथार्थता और सरसता से अत्यन्त उत्कृष्ट बन पड़ा है। मौमाभ्य मंजरी विद्या विकास के बिना बड़पती है। उसका प्रतीक्षा वर्णन , आडों में नींब म बाना, चंदन, बाद, बीड बाइ आदि सबका भयानक लगना भी वन स्थानीय :
(राजा-+ ) निवि करि सोडग कुन्दर रे बोइ वाम बाट नीम भाव नवमलेरे, मिरर बाट
दृषि कापी बो मिलाय, बाल बालन विमा विकास म लिभीय मार, प्रहपूरिन मन की भाव
इस विती विस बोलासीसी समापी बडी रे, बदन वाली भाल दावानल मिन बीमडारे, जिस्या करवात कम माद बाबा रे, गा बिस वरसंति