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________________ ६८६ सरसता पर अनेकों एथ हो गए थे। विद्या से लोकानुरंजन करने वाले विनयचटूट को विद्वया किस नाम दे दिया गया। संजम मंजरी दुस में दिन निकालने लागी | सखी के यह कहने पर भी कि विनयचटुट महान विद्वान है उसे विश्वास नहीं हुआ। ऐसे ही समय में जमीर से एक सन्धि विग्रह का एक लिपि पत्र आया । उसे नगर का कोई व्यक्ति, किं विद्या विकास को छोड़ कर नहीं पढ़ का राजा ने उसे प्रचान बना लिया लिख से विद्या विलास की बड़ी प्रशंसा हुई । पति पत्नी की यह अमवस राजा को भी ज्ञात हुई उसने इसका कारण जाना व भैव लेना चाहा और उसके महा भोजन करे गया पर संयम मंजरी ने अनेक वस्त्र बदल बदल कर पहने । अतः राजा न जान सका ।थी बार राजा ने दूसरी युक्ति सोच नगर पालिका के सामने प्रधान को सपत् नृत्य मान करने की कुल रीति बताई | संजम मंजरी ने कहा कि यदि प्रधान गीव रोगा और स्वाद बजायेगा तो वह नृत्य जरूर करेगी। ऐसा ही हुआ। दोनों मिले। जीवन में आनन्द छा गया। दोनों पति पत्नी का वर्षों का मौन टूट कर दूर होया । दोनोंहाथी पर बैठे। पर इतने में राजपुत्री की अंगूठी गिर गई। विद्याति को उसने लाने को कहा वह नीचे उत्तर कर लाने गया तब तक सवारी आगे रक गया और बाम एक सौदर्य नगर में प्रवेश करते करते नगर के दरवाजाव छेद में से प्रविष्ट होने को गया तो उसे को एक बैक्या ने देखा तो उसे मंत्र इवारीयार करता बना कर पैर में काला डोरा बांधकर अपने पाव र छोड़ा। वो पंजरी के पास चला गया। राजकुमारी तड़प रही थी उसका उस सोल दिया विद्या विलास पुनः प्रधान बन गए। गविका में भी उसे उसकी पत्नी को सौप दिया। राजा ने दीक्षा लेकर प्रधान को रसोय विगा। विद्याविलास ने राजा बनकर अपने fear के नगर पर बढ़ाई की वहांके राजा को परास्त किया। फिर संधि करने के लिए नगर आये या विमा विलास ने पूछा क्या आप मुझे षडियानते हैं? पिता पुत्र गले हिन्द छा गया श्री पूर्वजन्म के f
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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