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प्रस्तुत काव्य ४४० कड़ियों में लिखा गया है। पवाड़ा शब्द को कवि ने चरित मूलक अर्थ डी में लिया है परमिहिं अचल बचामण्उ ए विद्या विलास चरीउ से यह बात स्पष्ट हो जाती है।
विद्या विलास पवाडो की कथा वस्तु बड़ी रुचिकर है। कथा तत्व में घटनाओं की प्रधानता तथा वैचित्र्य है। पूरा काव्य घटना प्रधान है। कथा तत्व की सरसता काव्य का पदलालित्य बढ़ा देती है। कथा संप में इस प्रकार है:
कथा सार
उज्जयनी नगरी में धनवाह सेठ के चार पुत्र थे ।उस नगरी का राजा जगनीक था। धनावर सेठ के चार पुत्र थे। बारो पुत्रों को उसने बुलाकर धनोपार्जन की विधि पूछी तो प्रथम तीन ने रत्न परीक्षा, सोने चांदी के व्यापार, कपड़ों का विक्रय आदि के माध्यम को बताया पर छोटे श्रीवस्त ने कह दिया कि मैं वो राजा की मीति राज्य करूंगा। इस पर बिगड़ कर पिता ने उसे घर से निकाल दिया। श्रीवत्स या घनसागर रत्नपुर नगर में आकर एक पाठशाला में अध्ययनार्थ प्रविष्ट हो गया । पर पूर्व जन्मों के संस्कार से उसे कुछ भी याद नहीं रहता था । सब उसे मूर्खचट्ट या विनयचट्ट कहने लगे। इस प्रकार मूर्तच मे १५ वर्ष तक मुफ की सेवा की। इसी पाठवाला में नगर की राजकुमारी और प्रधान का पुत्र पढ़ता था दोनों मैं प्रेम हो गया। संजय मंजरी ने उसे विवाह का किया पर प्रधान का पुत्र नहीं कर सका। उसने एक युक्ति निकाली लिन स्थान पर प्रधान पुत्र ने विनयचट्ट को मेजा, उसे समझाकर कि वह फिर भावावेगा।रातों राम विला होकर
ऊंटनी पर बिठाकर
ले जाना। बिट राजी हो गया और जाकर
उसी रात गुरु से आशा गांधी
ने अपनी कृपा से सरस्वती को अभिभूत कर के
अनेक गुणों को की सेवा कर वर दान दिए । बट्ट महान विद्वान हो गए। सरस्वती उस पर बड़ी जीत हो गई हो गया। अंधियारे में ऊंटनी पर बैठकर दोनों कि मागे। पर प्रातः जब संजम मंजरी ने पूर्वच को अपने साथ देवा तो महान हुई चैन में बार विमम्बट्ट महान काव्य बनाने लगा उसकी