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0 विद्याविलास पवाडी
विद्याविलास पवाडी की प्रतियां बहुत बड़ी संख्या में उपलब्ध है। पाटण मंडार में इसकी प्रतियां कई है। रचना का सम्पादित तथा प्रकाशित पाठ प्राप्त है। हीरानन्द सूरि का काल निश्चित है। इनकी कृति कलिकालरास पर रास अध्याय मैं प्रकाश डाला जा चुका है। वीरानन्द पिप्पल गच्छ के थे तथा इनका समय
१५वीं शताब्दी का उत्तराध था। है। रचनाकार ने पवाडो को प्रवादकः
प्रस्तुत कृति की रचना सं० १४८५ में की गई या प्रशस्ति काव्य कहा है:दिय डामिंतरी जाणी
विद्या विलास नारद पवाड
वस्तुतः इसी रचना की कुछ प्रतियों की पुष्पिका में इसे रास, चरित आदि कहा है परन्तु लोक कथा काव्य के रूप में यह काव्य लोक आख्यायन परम्परा को सुरक्षित रखने वाला उत्कृष्ट काव्य है। विद्या विलास पवाडी, कान्दे प्रबन्ध, माधवानल तथा त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध के समान ही है। तुलना करने पर अनेक कड़ियों तथा दों में साम्य मिल जाता है। विद्याविलास पवाडी विद्या विलास का जीवन चरित वर्णित । विद्याविलास की कथा प्रेरणा मूल संस्कृत के विनय चन्द्र कुछ मल्लिनाथ काव्य (सं० १९८४ के समीप) है। इसके वितीय सकी या विनयचटकी कथा ही इस रचना का है क्या
मैं उससे अन्तर स्पष्ट होता है। आगे भी स्वामल पट्ट ने गुजराती में विद्या विलासनी भी वाती काव्य लिखा है जिसमें विद्याविलासमी को नायिका के रूप में चित्रित किया है।
१- विद्याविलास पवाडी के (१) लिखि गरि
सुंदरि रे (१।२८१ - २९७)
(२) उगी नमरी मी बरमारी है रंग धरेवि (११३७०-३८४) (३) tantura बरवानीक (१२४२९१४४०) आदि पद
कान्हडदे प्रबन्ध, वीर त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध में उभयनिष्ठ है। - इसी प्रकार का बूढा, प्रबन्ध तथा राम आदि रूपों में भी कृति विदमा विलास
पवाड़ी उक्त तीनों समकालीन कृतियों सप्त साम्य रखती है।