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के साथ विचार किया है। ति श्री कामता प्रसाद जैन के संक्षिप्त इतिहास की माति महत्वपूर्ण है तथा मवीन सामग्री पर भी विद्वानों के सामने संक्षिप्त और सरस रूप में प्रकार डालती है। शास्त्री जी ने दोनों डों में नवीन अध्यायों नए माराव्य स्पष्ट किए है और हिन्दी म साहित्य की ओर विद्वानों की विशेष रुचि काहवान किया है। विवेवन:- परन्तु इसमें अमेटियां रह गई है जिसपर अगरबन्द नाहटा विस्तार में विचार कर चुके है। बाध की स्त्री जी ने जो देशी भाषा प्रबन्ध काव्य, हिन्दी जैन प्रबन्ध काव्य, अपांच के बाद की पुरानी हिन्दी के जैन प्रबन्ध काव्य तथा हिन्दी जैन महाकाव्य शीर्षकों के वर्ग को विचार किया है अपने में अपर्याप्त है। साथ ही ये सब नाम एक ही प्रकार के कामों के पर्यायवाची पी है तथा ये आकिात सम्बन्धी मौलिक सामग्री का समावेश भी अधिक नहीं कर सके। अतः मध्यकाल और माधुनिक काल की इष्टि से ये दोनों विशेष उपयोगी हो बबई । परन्तु माविकास के सम्बन्ध में गए मातब्य और ध्यास्यान करने में रखना सामान्य ही है। (१७) हिन्दी के विकास में अपज का योगः
श्री नामवर सिंह (अब डाक्टर) की यह पुस्तक साहित्य काम तिमिटेड, इलाहाबाद १९५५ प्रकाशित हुई। डा. नामवर सिंह ने प्रस्तुत ग्रन्थ को दो मन्त्री विक्त दिया है। प्रथम बन्ड में अपवमापा का उलव और विकास, परवीं अपच और उसमें हिन्दी बीग, बप हिन्दी का उद्धा और विकास अध्यायों पर विचार क्विा या शिवतीय व साहित्य या हिन्दी का अपांव पसाहित्यिक सम्म स्पष्ट किया।
बना पर्याप्त म की वा डा. राम सिंह तोमर के बोध प्रबन्ध की नाति निदी विकास का बोम निधारण करने में उपयोगी है, साथ ही माहितीन दी ग साविकी पृष्ठभूमि के भययन, बपौत्र के परिनिम्म्यि पूर्वी और उत्तरी भाषा वानिक और सात्विक विमा
नामवर सिंह ने बीमार संजोगा। इसके अतिमिलिमी बार असार अपांच स्वयों ममात्र
परिविष्ट र दोहा