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(२५) हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहासः
मारतीय हान पीठ काली सन् १९७ श्री कामता प्रसाद जैन ने इसे प्रकाशित किया है। श्री कामता प्रसाद जैन:बीर- और जैन-सिद्धान्त पारकर के सम्पादक के रुप में हिन्दी जैन साहित्य की सेवा करते रहे है। प्रस्तुत कृति में हिन्दी के बादिकाल से लेकर मध्यकाल की रमाओं का सामान्य परिचय दिया है। साथ ही हिन्दी की उत्पत्ति का भूल जैन साहित्और उसका काल विभाग, आदिकाल का साहित्य और गहब पाषा आधि अगायों के अन्तर्गत हिन्दी जैम साहित्य पर प्रकार डाला है। डा. वासुदेव बरण प्रवाल ने कति का प्रावधान लिया है। जो पर्याप्त मारपूर्ण है।-हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास- पाली कृति है, जिसने प्रेमी जी के निबन्धों की पाति विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया तथा महली बार श्री कामता प्रसाद जी ने निश्चित रूप रेखा इवारा इस रचना का प्रकाशन किया। विवेचन:- इतमा होने पर भी कृति में कई संगतियां आ गई है। श्री अमरबन्द माटा ने इस सम्बन्ध में कई प्रमों का निराकरण किया है। श्री कामता प्रसाद जी ने मांग की ही रचनाओं को पुरानी हिन्दी की रचनाएं मानी । तथा वे भी मी मादी से पूर्व की कोई पुरानी दिी की रचना प्रस्तुत नहीं कर सके। परन्तु इस रचना से ना अवश्य मा कि विद्वानों का ध्यान हिन्दी जैन साहित्य की मोर गया। रचना आधुनिक काल (वीं वादी) के कतिपय कवियों का भी लेखक ने परिव दिया है। सामान्य रमा उपयोगी है। (२) हिन्दी जैन शाहित्यपरिशीलन- भाग १.१४
अस्य प्रथम और हिवतीय दो पालो लिा गया है। यह भी भारतीय भाषीक कारी मिली में प्रकाशित wिया है। प्रथम भाग में निधी र प्रकायों और भागयों, देशी भाषा के जैन प्रबन्ध काय, पीय परवर्ती काव्यों पर पुरान गन्ध माहित्यमा पार यी हिन्दी म गीति काय, यक, काम शाहित्यमा मात्मन्या काव्य पर विचार ािा दुसरा मानिक कान्य धारा, मानों, मत गनि कि विकास, उपन्यास, था और निमाया गयास्मीपर पर्याप्त श्रम