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________________ ६७७ १५वीं शताइदी से हिन्दी में पवाडो की परम्परा में सर्व प्रथम रचना विड्या विलास पवाडो ही है यद्यपि १५वीं शताब्दी में अधिक संख्या वाली रचनाएं इस काल में नहीं मिलतीं, परन्तु इससे परवर्ती काल में इस परम्परा में पवाडो संज्ञक अनेक रचनाएं मिलती है। १६वीं शताब्दी में जैन कवि ज्ञानचन्द द्वारा रचित बंक्यूल पवाडो है, जिसकी रचना सं० १५६५ में काठियावाड़ में हुई। ___१०वीं उताब्दी में राजस्थानी में लिख पाबूजी के पवाडे प्रसिद्ध है।10वीं शताब्दी में पवाड़ी की परम्परा में असाधारण संख्या में योग देने वाला मराठी साहित्य है, जिसमें शिवाजी के समय में ही अनेकों पवाड़े लिखे गए जिनकी संख्या लगभग १०. है। इनमें अधिकार गेय वीर काव्य है। शिवाकाल से साहू काल तक के सात पेशवा काल के १५. और बाकी १४०. ई. के बाद मिलते हैं, जिनमें अज्ञान दास का अफजलसा बघ, और तुलसीदास का तानाजी मालचरे का पवाड़ा, बहुत प्रसिद्ध है। वस्तुतः मराठी भाषा में भी शिवाजी के पहले पवाड़े पाप्त नहीं थ। इस प्रकार प्राचीन राजस्थानी या जूनी गुजराती से पारम्भ कर यह परम्परा सम्पन्न रूप में सुरक्षित मिलती है। पवाडो के स्वरूप की रक्षा दवताओं की स्तुति प्रशस्ति के रूप में रिगवेद से ही प्रारम्भ हो जाती है परन्तु परवी प्रन्थों में पवाड़ा किसी विषय विशेष के रूम में नहीं थे। बस यह स्पष्ट कि पवाडो की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है और उसके पूर्व विक्यों में भी अनेक सों में परिवर्तन परिलक्षित होता है। - १- कल्पना अमरेश अक्टूबर १९५०-यान अपहषिपर बाईपल्याडउ परचंद राविस कपनि परिसर "विकत बबाल दिव्याधिवि देवव्यावर कब्ध पथम * १. मराठी और मा साहित्य प्रमाल नाच • ५. राजकमल प्रकाशन दिल्ली * कल्पना वर्ष ९पर पवाठों कीप्राचीन परम्परा शीर्षक लेख श्री
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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