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पवाडों संज्ञक रचनाओं की परम्परा पर विचार करने के बाद पवाड़ा शब्द के अर्थ उसके प्रचलित प्रयोग और उसके उद्भव की संभावना पर भी विचार कर लेना चाहिए।
भाषा शब्द कोश में पवाड़ा,पवाड़ा, पंवारा संज्ञा पुल्लिग, देराज (संस्कृत प्रवाद) लम्बा चौड़ा या विस्तृत इतिहास क्या वध विस्तार से कही हुई बात के गीत अर्थ में मिलता है।
गुजराती जोडणी कोर में पवाडा संस्कृत प्रवध स व्युत्पन्न है। आप्टे के संस्कृत अंग्रेज़ी कोश में पवाडी का अर्थ सूचना, किमर्वदंती, कहावत अथवा लोक विश्वास बताया गया है। डा. सत्येन्द्र ने परमार शब्द से पवाडो की उत्पत्ति बताई है। विद्वान् डा. टर्नर ने इसकी व्युत्पत्ति "संस्कृत प्रवादक शव से बताई है। जो कुछ अंशों में ठीक भी लगती है।डा. टेसीटोरी ने अपने (Gandhe chrouse,
* परवाडा राजस्थानी व गुजराती में प्रवाटा अब्दीका स्पष्ट किया है।यह भी संभव है कि संस्कृत प्रवाद की पवाडो के मूल में रहा हो यथा प्रवाद पवाम पवामडल अत: यह पवाडउ प्राचीन राजस्थानी या पुरानी हिन्दी का शब्द है। बंगाली लोग प्रवाड़ा की व्युत्पत्ति पयार से मानते है।अनेक विद्वान प्रवाइ, प्रबंध आदि अब भी इसके मूल में बसला की कहीं लोक माथा या लोक काव्य का भी योग पवाडो के रूप में मिलता है परन्तु अद्यावधि पवाडो भव की त्वरित के लिए की मई अनेक सम्भावनावों में कोई भी अब तीक पवाडा का अर्थ स्पष्ट नहीं करता। यो प्रवाद अद में इसकी कुछ संगति बैठखी है पर वह अर्थ भी किसी
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४- लोमा का अध्याय ५- मझारखी ई .