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कर दिया गया वही उसनेरत्नसर मूरि चैनाचार्य का दर्शन किया और उनके नित्य प्रति के उपदेशे के प्रभाव से बालक के हृदय में दीक्षा लेने का भाव जाग्रत हुआ और बार बार उसने दीक्षा कन्या भईवरी ए की रट लगा दी।
__ बालक विजयी हुमा अनेक स्थानों से आये विविध संघों ने उसका स्वागत समारोह किया। नारियों के रासगान, अनेक बायों सहित हुए सथा मांगलिक उत्सव सम्पन्न किए गए कवि के काव्य का एक उदाहरण देखिए । कवि ने दीपा महोत्सव का एटादार वर्णन किया है।माकाकी सरसता तथा प्रवाहात्मकता देखिए।
नपरावर परिमिसिइ ए, परिसिह संयम नारिन चउरी गुडर वाडिया ए, तकिया तोरण चंग तु पाहाजन महू जीमाडीइ ए मंदिर मोटउ जंग तु कुंवर हिब सिगारिइए मस्सक मरद पव गाहे बहिरसा ए, दीस अडलर रूप
कडि नवरंग पछेवडउ ए, ओढणि आश बीर वं तत्कालीन सामाजिक प्रथाओं, वैवाहिक मागलिक उत्सवो, तथा संयमत्री के वरण में बालक का उत्साह चित्रात्मक रूम में दिखाई पड़ता है। भाषा की सरलता और पदों का चयन प्रवाहपूर्ण है। उधरम देखिए।
सार तुरंगम आभिउ ए, बडित बावन बीर कामिनि मुलि मंगल भगइ र भट्ट भगा बाबत सूण उतारा बहिनडी ए, र अवि जामद हु वर पोसालइ माकिए,इरिय मया सवि इरि
श्री रलवर हरि दिया ३, माह मनोरथ पूरि। कवि का वर्णन यासंकारिक है। विविध बालंकारिक वर्णनों में कवि की यमक की छटा भीष्टव्य वारस मा होमा: