SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 714
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७३ इस प्रकार रचनाकार ने भास और वस्तु मैं काव्य को विभक्त करके पुनर विवाह की क्या वस्तु लिखी है। रचना की भाषा सरस है। कवि ने वस्तु का प्रयोग किया है।काव्यात्मक प्रवाह पाषा-जन्य-सरलता और मालकारिता मेरचना का महत्व स्पष्ट हो जाता है। क्या शिल्प की दृष्टि से रचना साधारण है। शिल्प वही प्राचीन ही है।वर्णन पद्धति सरल और प्रेणीय है। : सुमतिसाधसरि वीवाहल्लो': यह रचना कवि लावण्य समय इवारा विरचित है।रचना में कवि ने पी रचना समय तथा स्थल का उल्लेख नहीं किया है। परन्तु इसकी भाषा और काव्य को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह रचना १५वीं बताइदी के उत्तराई की है। मुमतिसाच दूरि की यह रचना भी पूर्व उल्लेखित रचनाओं की भाति विवाहला शिल्प की है तथा कवि ने इसका वार्म विषय - एक बालक का वैराग्य श्री की ओर आकर्षित होकर संयमत्री के साथ पाणिग्रहण ही रखा है। कवि ने रचना का प्रारम्भ एक अनूठे स्वप्न में किया है। जिसका वह संकेत करता है। रचना में मेवाड़ के गावर नगर के गजपतिशा तथा उसकी स्त्री संपूरी देवी का वर्णन है। प्रारम्भ में ही कवि ने शाह की पत्नी को आये हुए स्वप्न का वर्णन किया है: कहिय अपन खोडामा जागीर बीमाधि नारे वा ईनि गाइड कीजा निरमळ गावरे कवि ने स्वप्न आने का बात्पर्यपुत्र होना स्पष्ट किया और आमे पुत्र जन्म के वात्सल्य का दर वर्णन किया है। ५ वर्षका बालक अध्ययनशाला में प्रेषित १- ऐतिहासिक रास संग्रहः भाग १ संशोधक नियधर्म मूरि (१९२०)
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy