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नव नखिय वाणिहि, मति विनमिडिं डियर हरिष घणउधरी
मई एक चित्तिहि करीब प्रतिहि अंगि आलस पडिहरी
जा सात सायर वर दिवायर गयणि रोहिणी चंद ती ए अनुपम, सुगुर सरिसउ जयउ जगि वीवाइल
वर्णन की अनुप्रासिकता स्पष्ट है। रचना आलंकारिक तथा गैय है। भाषा सरल है। रचना निर्वेदान्त है। इसी प्रकार की प्रवृत्तियों वाली और भी रचनाएं उपलब्ध होती है, जिनमें आध्यात्मिक विवाहलों का सफल वर्णन मिलता है। काव्य की दृष्टि से मी विवाहलो संज्ञक रचनाएंमहत्वपूर्ण है।