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९ से २० तक
मूलणा छंद ।
२४ से २८ तक - पादाकुल १६ मात्राओं का।
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३० से ४४- बुध ३७ मात्राओं का फूलना छंद वर्णित है।
इस प्रकार भूखणा छंद का प्रयोग अवेदेव सूरि ने अपनी प्रसिद्ध रचना समरा रासु मैं भी किया है। गुजराती भाषा में १५वीं बताब्दी के उत्तराध में नरसी मेहता ने भी इस छेद का वर्णन किया है। भरत के जिनपति सूरिधवल गीत में भी यह छंदफ़िलता है। नन्दन के इस छंद का एक उदाहरण देखिए:
अस्थि गुज्जर घरा सुन्दरी सुन्दरे, उखरे रयण हारो वमार्ग लच्छि केलि हरं नय पल्हमपुर, सुरपुर जेम सिधामिका (३)
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माई पणइ निणि वच्हमोलिम घणी व नवि जानथ तासु सार कपि न ए मोडिन भीजय दोहिलि जाल बीजइ अपार लोभिन राजए मयमि न माचर, काचर चित्ति सा परिहरप अवर नारी अवलोaणी स्तर, आपण पई सर्यि सतवर (१४-१५)
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करि गुण संचियं कटरि इंविजय, कटरि संवेग निब्वेय रंग बापु देसम कला बापु मइ निम्बला, बापु ठीला कसायाम मंग
dee ve गुण गवं जैम वाराय, कविउ क्मि सक्कर्ड एक जीड
पाक न पावर सारखा देवया, सहस पुडिनगर जा रत्ति बीड(३९१
भाषा की दृष्टि से रचना में मध्यकालीन राजस्थानी की प्रवृत्ति स्पष्ट है। साथ
डी उत्तर कालीन स्थिति परिलक्षित होती है।
ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह रचना महत्वपूर्ण है। कुल चवालीस बंदों में लिखी
१- प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह- पृ० १४।
२०० काव्य संग्रह ० ८०९।