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________________ ६६७ सौन्दर्य वर्णन, दूल्हा का पाणिग्रहण करने का उत्साह बरात की साज सज्जा आदि सभी चित्र दृष्टव्य : मैलिय साजण चालs नियपुरे, धवल धुरन्धर जोत्रिय रहवरे । चाल चालु रहन सही वेगहिं सामहि, धारल नन्दणवर परिणय महि ।। इम पमणतिय सुललिय सुन्दरी, गायई महुर सरि गीयह रिस मरि क्रमि क्रमि जान पहुतिय सुहदिषि, पीपपली परे गुर हर सिउ मणि अडा सिरि वीर जिनिदंह मंदरि, मंडिय वेहलि नदिवा सरि तरल तुरंगमि वडियउ लाडणु, मागण बंछिय दास वियइ धनु आविउ जिनहरि वरु मन हरवउ, दीस कुमारिय सर्व रूथ लेवउ । (पद २३-२६) पूरी रचना घात ( पत्ता) मास में विभक्त कर दी गई है। कवि ने वस्तु छेदका कईबार प्रयोग किया है। रचना की भाषा अलंकारिक वाक्य छोटे और सारपूर्ण है। शब्दावली कोमल है।जन माया काव्य होने से रचना में मिठास का समन्वय होना स्वाभाविक है। संघ वर्णन, दीक्षा समारोह, संयमत्री विवाह और संसार त्याग इस प्रकार की रचनाओं के विषय रहे है। कवि की अलंकारिक शैली तथा पद्धति उल्लेमी है: थात: after मुम्जर after गुजर देन विसा जहि पल्लव नगरो क्रूहि जैम नर स्यणिमंडिज ais निवसs साडु-वरो स्वपाठ गुण गणि गडिर तह मंदिर पारल उमरे उद्यम सुकुमारक areer सो समर जिन वदुधइ रूप अपार (८) रचना की उपयोगिता काव्य बंध की दृष्टि से स्पष्ट होती है। छंदों के प्रयोग का वैज्ञानिक वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है: पद से तक मूलया छेच कुल यात्रा ३७ (बुध) ११२३३१९३४ और ४० मात्र के अन्तर्गत वर्णित वस्तु रूंद |
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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