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आलंकारिक और प्रासादिक है। एक उदाहरण देखिए:
समरिगो पभर जिम रमइ निय सयण मणि, कमलवणि दिणि रयणिवहु पयार लाये लोयम दले अभिर वरसंतउ वलए अवध जिम बीय चन्दो निच नव नब कला घरइ गुण निम्मला ललिय लावन्न लोहगूग कंदो।
मा के वात्सल्य भरे आग्रह, बाल हठ, दीया कुमारी की अलौकिक स्प लावण्य और दीक्षा की तितिक्षा मा दि सब के बड़े सुन्दर चित्र कवि ने उरी है। मा बार बार अपने प्रिय वत्स को सुन्दर राजकुमारी से विवाह कराने का लालन की है और पाचों प्रकार के भोग भोगने के लिए कहती है। कवि ने इन्हों वर्णनों को विविध उक्सियों से श्रृंखलाबद्ध क्यिा है।
माइ भणइ निमुपि बच्छ भोलिम घणो, त नवि जापए तास सार कपि न रीजए, मोहिन मीजए, लेहिली जलवीजइ अपार ।। लोभि न राचए मबपि न माचए, काचए चित्ति सा परिवर। अवरनारि अवलोयणि रूसए, आपण पई सयि सस्त बर।।
हसिय भनेरीय बात विपरीत, तासु लणी छंद थणी सन्छ । म कल कमल बल कोमल इघि, बाथ मनार लिसितम्। सपि अनोपर्म उत्तम वंश, परमाविस वर मारि ।। नव नब गिहि पंच पयार, मोगिवि मोग करता कुमार
माध्यात्मिक विवाह का चित्रात्मक वर्णन कवि के भाषा-कौशल वापी की विधता,पद लालित्य, अर्थ गौरव और विच्छित्ति के साथ साथ आध्यात्मिक रख की पुष्टि करता है। निम्नाक्ति उद्धरण कबीर के इल्हिन गाकर मंगलाचार और मीरा के समिरी में तो गिरधर के रंगराती ---- पंचरंग बोला पहन सही में प्रमुट खेलन जाबी, गुट में मेरा पिया मिलेगा। सोल अडवर गाती असे पदों में विस आध्यात्मिक आनन्द का रहस्य छिपा है वैसा ही मधुर रस जिनोव्यसूरि विवाहकों के मावि उदवरण में निम्पन्न हुआ है। दीक्षामारी का