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________________ ६६४ : जिनोदयमूरि विवाहलाः' विवाहलो संज्ञक रचनाओं की परम्परा के पश्चात् प्राप्त प्रतियो में से कुछ विवाहलो का परिचय ना भी आवश्यक है । यो अन्य काव्य रुपकों के स में वर्षित कुरा विवाहलों के शिल्प का विवेचन प्रस्तुत करने वाली कुछ रचनाओं पर पहले प्रकाश डाला जा चुका है जिनमें मैं० १३३१ का सोममूर्ति द्वारा विरचित जिनेश्वर सूरि विवाह वर्णन रास तथा सं० १३९० की सारमूर्ति की प्रसिद्ध रचना जिनोदयसूरि पट्टा भिकेक रास है।' रास रचनाओं का विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए उस अध्याय में हमने इन रचनाओं पर विचार किया। साथ ही विवाहोत्सव मैं गाई गाने वाली रचनाओं में गीत या धवल मंगल संज्ञक रचनाओं पर भी आमे प्रकाश डाला जायगा। इन खनाओं में १३वीं शताब्दी के बाहरवण और मत्र द्वारा विरचित जिनपति सूरि घाल गीत है। ये सभी रचनाएं प्रकाशित है। विवाइलो में पट्टाभिषेक रास या दीक्षा विवाह वर्णन रास आदि संजक कृतियां भी आ जाती है क्योंकि इनमें पी कवि लौकिक अलौकिक रूप में बहुधा उन्हीं क्रिया कलापों पर प्रकाश डालता है जो विवाहलो संज्ञकरचनाओं में होता है आध्यात्मिक विवाह के रूपकात्मक चित्र इनमें प्रस्तुत किए जाने है। एक कृतियों में मार विजय के दृश्य तथा इसके उपरान्त नायक का संयम कुमारी से विधिवत पा विग्रहण आदि वर्णनों के चित्र प्रस्तुत किए गए है। ऐसे काव्यो में काव्य की दृष्टि से भी विशेष निखार आ गया है, उदाहरणार्थ का शक रचनाओं के अध्याय में देवरत्न मूरि ग इसी प्रकार की रखना है। उक्त रचनाओं के शिल्प में तथा बिवाहलो - - meme १. देखिए ऐतिहासिक जैम काव्य संग्रह ० ३९०-वारा श्री आरचन्द पंवरलाल नाटा। बही थप. ..॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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