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________________ प्राप्त करते थे। क्या वस्तु और शिल्प की दृष्टि से रचना में मौलिकता मिलती है।कृति कलात्मक है और होटी होते हुए भी अपने में रसपूर्ण है। वैष्णव सम्प्रदाय के किसी कवि ने अंगार और शम का इस प्रकार समन्वय उपस्थित नहीं किया। प्रारम्भ में ही कवि भक्ति से गुरु का चिन्तन करके पिता श्री नेमिचन्द और माता लखिमादेवी का कलात्मक परिचय देता है: कंत सण कला कैलि भावामु महरवाणी अभियं भरती रेहए तस्थ भण्डारिको पुन्नि मा चंद जिम नै मिर्वदो सयल जण नयण आषद अमिय-उड़ा स्प लावण्य सोहाग चंद पणइपी लखमिणी तासु वक्सपि पवर गुण गण रयण राग रयाणि पदयार की अलकारिता में यमक लिक और रूपकों का आयोजन उल्लेखनीय है। बालक अंबड का मा का संयमत्री से विवाह के लिए हठ तथा मा का उसको संयम व तप की दुर्दरता और उसकी अवस्था की शवता समाना अत्यन्त सरस और काव्यात्मक बन पड़ा है और बालक का संयम की कठिनाइयों को जानते हुए भी पुनः इढ़ता से उत्तर देना आदि स्थल दृष्टव्य है:अंबंड- इह संसार दुइ मंडार वा इ मेन्हिसु अतिहि असार परपितु संगम सििरवर नारी माइ माइए मा मह पियारी मा की उक्ति तुहु नबि जापड़ बाला मोला, हुनत होइसर सरउ हिला मेरुघरे विशु निय भूय दंडिडि जलाहि तसेउ अप्पणि वाहत हिंडेबउ असिधारह उबारि लोहचपा चाववा इणि परि मा तुह रहि घर कहियइ हामि, जंतुहु भावद व तु मामि किपि न मावा विशु मंजम सिरि, माइ पपइ स करि अवर पषा हुस्करह बिना लिया कलिकाल - १- मैतिहासिक जैन काव्य संग्रह श्री अमरकन्द मंवरलाल नाटा पू. ३७७॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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