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________________ । जिनेश्वर मरि विवाइलो व रास : इस कृति के रचनाकार सोममूर्ति है, और इसका रचनाकाल सं० १३१ के पश्चात ही लगता है। कवि ने इस विवाहलो काव्य की रचना अपने गुरु भाई जिनेश्वर सूरि के शिष्य संयम या दीक्षा वर्णन के लिए की है।सोममूर्ति का जीवन चरित्र, कवि एवं ऐतिहासिक पुरुष के रूप में कई स्थलों पर विस्तार से मिलता है। अन्य प्रन्धों में भी संक्षिप्त संकेत मिलते है। प्रस्तुत रचना प्रकाशित है। मुनि जिन विजय जी ने पहले इसे अपने ऐतिहासिक ग्रन्ध जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय में प्रकाशित किया और इसके पश्चात श्री अगरचन्द नाहटा ने इसे अपने अन्ध ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में स्थान दिया है। इसकी एक प्रति श्री अभयजैन ग्रन्थालय में सुरक्षित है। कृषि का ऐतिहासिक दृष्टि में अध्ययन क से पर भी महत्व स्पष्ट हो जाता है। जैसा कि प्रस्तुत रचना के नाम से ही बात हो जाता है कि यह दीवा के समय पर रची हुई जिनेश्वर मरि के सम्बन्ध की कृति है नि मिच द पडारी के पुत्र ने जिसका दीक्षा का नाम जिनेश्वरसूरि व बचपन कानाम अंबड था, वात्यावस्था में ही संबधी विवाह करने का मासे निवेदन किया। मा ने तपस्या के कष्ट समभाये, पर बालक अडिग रहा और अन्त मैचूमधाम संयमश्री से नायक का विवाह सम्पन्न हुआ। बीचोत्सब की पंडारी ने सोत्साह पूरा किया। संयमश्री के विवाह की परम्परा आज भी मर धित मिलती है। वीतरामी और निस्पृह जैन मुनियों के दीवा प्रान करने पर श्रावक लय ताल नृत्य क्रीडा रास आवि करते थे। संयमत्री से विवाह करने पर शनि काम क्रोध मोहादि पर विजय १. देखिए. के ऐतिहासिक पुर्वर गव्य संचयः श्रीनिजिनपिय २२४-२२० । २.जैन युग बर्ष ३ . ४! -देविहासिक चैन काव्यग्रहश्री अमर चन्द भवरलाल नाहटा० १०८1
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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