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________________ दीवा को दीक्षा कुमारी तक कहा गया है। संयमश्री या दीक्षाकुमारी के साथ दीक्षित होने वाले का विधिवत विवाह होता है।ऐसे विवाह आत्मा का आभ्यंतरिक गुणों से सम्बन्ध स्पष्ट करते है। अपभ्रंश का जो अतरंग विवाह उसमें अंतरंग विवाह का रुपक बाधा गया है। आध्यात्मिक विवाह का हिन्दी साहित्य में भी वर्णन मिलता है।रूपकात्मक विवाह परम्परा में कबीर का दुलहिन बनकर मंगलगान करना और आध्यात्मिकता में डब कर प्रियतम से तन मन एक करने को मिलने व श्रृंगार करने का पद प्रसिद्ध है। अत: कबीर के ऐसे उपक, मीरा के सखी री मैं तो पुरमुट खेलने जाती जैसे पदों व आध्यात्मिक विवाहों के मल मैं अपशके अंतरंग विवाह जैसी ही रचनाएं रही होंगी। आदिकालीन इन काव्यों में प्राचीन राजस्थानी या प्राचीन गुजराती की ऐसी ही एक सुन्दर रचना जिनेश्वर सूरि संयमत्री विवाह वर्णन राम है। भारतीय साहित्य में विवाहलो परक रचनाओं में मंगल तथा शिवतरवतवे आदर्श को स्पष्ट किया है। इसी पूत भावना को प्रश्रय(साहित्य में स्थान) इन्हीं 'विवाहलो धवल या मंगल संक्षक रचनाओं इवारा मिला है। मंगल भावना से जीवन का मंगल सूत्र विवाह की प्रेरित होता है और उस मंगल भावना में मंगलाचरण, नावी अशीवाद आदि प्रशस्तियां भारतीय काव्यों १ मिली है। विवाहलो संशक रचनाएं भी ठीक इसी प्रकार की है। विवाह परंपरा पर इस प्रकार की अनेक रचनाएं मिलती है। इनमें आध्यात्मिक विवाहकीमाडि आनन्द मिलने लगता है। जो भी हो, बड्यावधि इस परंपरा में जितनी शरियां जैन कवियों द्वारा विरचित हुए है उनमें से कुछ प्रमुख रचनाओं का अनुशील बागे हों में प्रस्तुत किया गया है। धवल शक रचना मी शिवों का वर्णन आगे स्तोत्र स्तवन और गीय शक रचनामी के अध्याय में किया जायगा। विवाहला संज्ञक रचनामों की परम्परा और कुतिया स्वत्र ग्रन्थ व रोध का विषय है। यहा कतिपय रलाओं का ही परिचय दिया जा रहा है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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