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६५३ इस प्रकार उक्त वर्णन में एक चित्रात्मकता तथा स्वाभाविकता है कलियुगी वर्णन की पाति कवि ने अमया दित कृत्यों का पूरा रेसा चित्र प्रस्तुत कर दिया है।
कहीं कहीं नारियों का वर्णन भी कवि ने पर्याप्त प्रभावशाली किया है। मारी के पास किन उत्कृष्ट मासूमों को होना चाहिए उनका कवि ने क्रमशः वर्णन किया है। कवि की उपमाएंव स्पक उल्लेखनीय है:
दहा:
सील बरीरह भाभरण सोभे नारी अंग
मुख मंडण चासो बयण, वि तंबोलह रंग परिमल विण फूल जिम ससि विपी रयणीजाप
तिम सील विषु नरनारी मोहे नहीं इस बाण । इस प्रकार कवि ने शील की महिमा स्पष्ट की है।
वस्तुतः कवि ने इसी प्रकार की नीति, उपदेश, पूर्वभव वर्णन क्या कर्मवाद पर प्रकाश डालते हुए आदिनाथ का चरित चित्रण किया है। स्थल पर अनेक अन्तर्वथाएं और दृष्टान्त काव्य को लोकप्रिय बनाने में सहायक है। कवि की भाषा सरल है।छेद वैविध्य अनेक रूपों में मिलता है जिनमै, वस्तु, भास दूहा, भास चौपईनी, भास रासनी, हरा, भाम नरेसुवानी पास बीनती -इस प्रकार शीर्षकों के अन्तर्गत कवि ने दो और भासों का उल्लेख किया है। कवि ने प्रकृति वन, चरिबियक गुण वर्णन भरतेश्वर बाहुबली संघर्ष वर्धन तथा आदिनाथ हैवल्य तक का वर्णन क्यिा है। इस प्रकार कृति लोक भाका काव्यों की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। ब्रमजिनदास १५वीं शताब्दी के उत्तराईध व अतिम अतक में आते है। भाषा एक दम सरत तथा बोल चाल की हिन्दी है। जिनमें पुरानी राजस्थानी व गुजराती के शब्दों का प्रभाव है।
१-आदिनाथपुरापपत्र
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