________________
६५४
प्रस्तुत पुराण में पर्याप्त विस्तार है। काव्य समाप्ति पर कवि कुछ भरत वाक्यों का चयन दोहों में करता है:
बहाने जे कवड़ा सभा मीहि गुणवंत, रूचि सहित जे सामले तेह ने पुश्य महंत समकीत गुण उपजे करम नीम वलीसार तत्व पदारथ जाणीये ज्ञान उपजे भवतार।
इस प्रकार आदिनाथ का यह चरित काव्य भाषा और काव्यप्रवाह तथा कथा तत्व की दृष्टि से अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है।