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देवीय पुझे मारीय वापि, कही राणी तु मुगाप पुख्योत्तम क्वप संसार, हे माता तुमी कहो विचार अर्थ धर्म साध्यो जिणे काम, ते कोड़वी मुमति गुण प्राम हे पुस्बोत्तम कहीए माय के कहो जिम लागु पाय'
ए चारे पदारथ सार, साधि सके को पुरुष ममार प्रस्तुत रचना कवि ने मुन्थर पूक्तियां और सुभाषित लिखे है। मुन्दर सुन्दर नीतिप्रद बातें जो मानव जीवन के लिए विशेष उपयोगी है तथा विविध आख्यानों से बीत प्रोत नीतिमूलक वर्णन कवि की काव्य दक्षता को प्रस्तुत करता है।दुष्प्रवृत्तियों का प्रभाव वर्णन भी पर्याप्त स्पृहणीय बन पड़ा है। मस्तियों का वर्णन दोहा बों में देखिए:
जिदान घटे रहो मितिम परमानंद
वासं मने निपजे बाघो घरमा बथल देव परमादीया मंडरीक्ष्य रखा गुमवंत समष्टि करेमिली रत्नपुष्टी जयवंत
मि सबद बोहरममा मधोकवनिवार मलयाति मह को ही पुर्णध अतिहि अपार
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मास रासनी.
काला सूट दीर बीस बरस नर जातो बोय गय भरीर कौर धूम वर्षे दी काय दो भवर पाटन धका बेम बार पर मंदिर नवि होगते मागे ही बाब बाप पाए, पवरिति विम जोयतो माय मय बीधार नहीं , पाप करे नि राज को
मावि मोती मावि परिसी एमवी पूम नबी कारो) साना राबहीबारामादिनाथ पुराण पत्र पा