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________________ ६५० रचना पर्याप्त बड़ी है तथा २१५ पत्रों में लिखी गई है:वस्त:- आदि जिनेश्वर आदि जिनेश्वर आदपिस सरसती सामी ने बलीसाव इघि सारु माग निरमल, श्रीसकलकीर्ति पाय प्रणमीने मुनि भुवन कीर्ति गुरु वाहु सोडजल, रासकरी सीडू वडो' तम परसादे सार श्री आदि जिणंत गुण वर्षई चारित्र जोड भवतरि कवि इस प्रकार अपने लिए सरस्वती से सुधि मागकर श्रोताओं और पाक श्रावकों को सावधान करता है:मास जशोधरबि भवियण पावे सुगौ आज रास कई मनोहार आदि पुराण जोइ करी कवित्त कममोहार बाल गोपाल जिम पढे पुणे जाणे बामदे जिन सासम गुण नीरमला मिश्याम ते छ। कविने स्थल स्थल पर संसार की नश्वरता और कर्म विपाक विमर्श किया है। अनादि और लोकालोक तथा संसार रचना वर्णन देखिए अनादी नो धनसार, रचियो नहीं म विचार त्रिलोक तमो कई हुवे भेद, जिम कुमति पो हाये छेद भातोका कार अनंत परदेव केवल मान गोचरनरेश बेड मध्या के कावास सावरक को गुणवास " उक्त उइधरण में नो, आदि विपक्सिया जूनी गुजराती की है। वर्मनों में कमि ने विविध स्थानों की पति रखी है या गहन बन को ही सरल वर्षों में स्पष्ट यिा है। इन स्थानों से वर्णन में प्रवाह आ जाता है तथा पाका सरल और बरस बम बाची स्थावत्व के कारण ही चरित आस्थानों १.भामेर शास्त्र भंडार-पत्र.१५ १. आमेर शास्त्र मंडार पत्र-बादिनाथ पुराण, पत्र४॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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