________________
६४९
: आदिनाथ पुराणः
88880000
यह ग्रन्थ अप्रकाशित है तथा आमेर भंडार जयपुर में सुरक्षित है। प्रति परिचय इसप्रकार है- पत्र सं० २१५ साइज हिन्दी में लिखी है।प्रति साइज १०।६ इन्च प्रति पृष्ठ पर १३ पत्तियां है और प्रत्येक में ३-1 अक्षर है। प्रति आमेर शास्त्र पडार जयपुर, वेस्टन ने० ९३।
__ प्रस्तुत प्रति की प्रतिलिपि राजस्थान के ग्राम मैतवाला में पार्श्वनाथ के उपाश्रय में की गई। प्रन्धकार ब्रह्म जिनवास ने और भी कई प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखे है। जिनदास भट्टारक श्री सवल कीर्ति के प्रशिष्य के प्रशिष्य तथा भुवनकीर्ति के शिष्य थे।
प्रस्तुत काव्य, मगवान आदिनाथ का चरित आख्यान है। कवि ने विशाल मम में सारा चरित वर्णन किया है। विस्तार में पुराण में कवि ने आदिनाथ के जीवन चरित के पूर्व भवों का वर्णन किया है। पुराण में आदिनाथ के पाच कल्यापकों का विस्तार में वर्णन है। आदिनाथ के दोनों पुत्र भरत और बाहुबली के चरित पर भी कवि ने विस्तार में प्रकाश डाला है।आदि पुराण में प्रारंभ में ही कविने . श्रीसरस्वती माताये नमः- अब भाविपुराण रास लिख्यते-से रचना कारास नाम स्पष्ट होता है परन्तु रास का शिल्प नहीं होने और पूरा काव्य ही चरित मालक होने से, तथा क्या प्राधान्य के कारण इसे चरित संज्ञक काव्यों के वर्मत ही स्थान दिया है।
प्रस्तुत रचना के कस्ता विमम्बर है अतः दिगम्बर और श्वेताम्बर लेखकों की भाषा का स्तर हाटब्य है।
कृति का प्रारम्भ कवि ने मंगलाचरण से किया है। कवि नेवादि जिनेश्वर और सरस्वती की वंदना करइस चरित बाख्यान की रचना की है।
१- आमेर शास्त्र मंडार-पत्र - ११५