SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१ रचनाओं का समाहार इस ग्रन्थ में नहीं हो पाया है। साथ ही अर्वाचीन पद्म और रचनाओं की प्राचीनतम एवं अद्यतन सूचनाएं देने में GT. मैनादिया असमर्थ रहे है। डिंगल के सम्बन्ध में कोई निश्चित मत मेनारिया ने प्रस्तुत नहीं किया। इसके अतिरिक्त आविकालीन आहित्य की कुछ ही कृतियों की ओर इंगित मात्र करके दिया है फिर भी राजस्थानी भाषा और हिन्दी भाषा के सम्बन्धों का अध्ययन करने के लिए रचना उपयोगी है। राजस्थानी भाषा और साहित्य राजस्थानी पाषा के इतिहास का सर्वप्रथम उपादेय ग्रन्थ है। (२१) प्रशस्ति संग्रह: सन् १९५० में श्री कस्तूरचंद कासलीवाल एम०२०, शास्त्री के सम्पादकत्व में मानेर शास्त्र भंडार से जयपुर से एक प्रशस्ति संग्रह प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत कृति में ५० जप ग्रन्थों की मस्तियां संग्रहीत है। इनमें स्वयंभू पुष्पदस्थ, ननन्दि वीर, अमरकी र्ति यशःकीर्ति धनपाल, रवू मादि की यह प्रशस्तियां प्रमुख है। हम प्रवस्तियों के अध् यम को वादिकालीन रचनाओं की पृष्ठभूमि के अध्यन के लिए व्यवहृत किया जा सकता है। (१२) प्राचीन काम संग्रह: डा० भोगीलाल वाडेवरा में महाराजा सयाजी राव विश्वविद्यालय, बडौदा श्री सोमाभाई चारे के सहयोग से इस संग्रहको सन् १९५५ में प्रकाशित किए है। रचना में विक्रम की १८ बादी तक की कायु रचनाओं का संकलन एवं सम्पादन किया गया है। रचना नाविकालीन फातु रचनाओं का पाप्त बैज्ञानिक मा प्रस्तुत करती है। डा० पांडेसरा ने इस रचना में ३८ का काव्यों का समावेश किया है। साथ ही प्रति परिचय, बम्याच तथा अन्त में एक कोच देकरमति को सर्व ग्राम और सर्व इन बना दिया है। रचना after, बीकानेर आदि स्थानों में उपलध का देती है। व वाद तक पाटन जैसलमेर, काव्यों के अध्ययम में बड़ा योग विवेचनः डाबरा ने इन्हें प्राचीन गुजराती की रचनाएँ का है परन्तु वास्तव मैं ये काम प्राचीन राजस्थानी या मी गुजराती के है। इन कामों में से कुछ का
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy