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ने १५वीं शताब्दी के पूर्व राजस्थानी और गुजराती दोनों भाषाओं की एकता सिदध की है। इससे राजस्थानी का हिन्दी के विकास और उद्भव में कितना योग है, यह स्पष्ट हो जाता है। प्रस्तुत रचना- से आदिकालीन हिन्दी रचनाओं की भाषा को समझने में योग मिलेगा। डा. बटी ने राजस्थानी भाषा की भाषा वैज्ञानिक विशेषताओं पर प्रकाश डालकर उसके स्वस्म का सही विश्लेषण किया है। (१९) पुरानी राजस्थानी
डा. एल पी. टेस्सीटोरी की इटालियन रग्ना के अंग्रेजी अनुवाद का यह अनुवाद ST. नामवर सिंह ने पुरानी राजस्थानी के नाम प्रस्तुत किया है। 670 टेस्सीटोरी के मन्च सेभी प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी और उनी गुजराती की एकता स्पष्ट होती है। रचना नागरी प्रचारिणी सी से प्रकाशित हुई है। रमा राजस्थानी भाषा की मावि ही पुरानी हिन्दी की रचनाओं को समझने में योग देती है तथा औरसेनी अपयश और राजस्थानी तथा अब आदि का पारस्परिक सम्बन्ध स्पष्ट होता है। हेमचन्द्र के दोहों की भाषा डा. टेस्सीटोरी मे गैरसैनी अपक्ष कहा है, जो विवाास्त तो है पर उत्तर अमश का राजस्थानी से सम्बन्ध समझने के लिए पान पुत्व पूर्ण है। (२०) राजस्थानी पारा और गाहित्य
हिन्दी साहिला सम्मेलन प्रयाग 2. २००८ में यह रचना प्रकाशित हुई। डा. पोडीलाल मेनारिया की यह ति राजस्थानी भाषा और मालिका प्राचीनतम इतिहास है। डा. मैना रिया मे मोटे परिमल, मारवाड़ी, मेवानी, गरी, बागड़ी मास्त्री, माविका परिका दोष प्रारम्भिक काल, पूर्व मध्यकाल, उत्तर मध्यका गहित्य माधुनिक काल, पर और प्राचीन और भाचीन गट आदि घर प्रकार है। रचना . मेवारिया ने रचनाकारों का सामान्य परिचय विवाहा मारिया ने कमाविबाहीम जैन कवियों का उल्लेख कर नई सोच प्रस्तुत की। बीसलदेव राम, आदि कृतियों का निधारम आदि
ष्टिकोप क्यिा ।। पिन रमा मात्वपूर्ण पापी बालिकाठीय मन
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