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________________ में उत्कृष्ट त्या मुला हुआ है, जिसमें इन्होने आदिकाल सम्बन्धी प्राप्य प्रायः लगभग सभी निधान कलंक सामग्री का प्रभूत उपयोग क्यिा है। दिववेदी जी का यह प्रन्ध १०वीं से १४वीं शताब्दी के साहित्य का हानिक विश्लषम है। इनमें पात्रों प्रवचन हिन्दी साहित्य में पाच नये अध्यायों का गणेश करते है। उनका इस काल में प्राप्त विविध सामग्री का परीक्षण प्रवृतियों का निर्धारण, मये नागों का प्रवस्तीकरण और उनका हिन्दी साहित्य सम्बन्ध स्थापित कला दिववेदीती के विदाथ रोध सम्बन्धी दृष्टिकोण का परिचायक है। यही नहीं, काव्यात्मक दृष्टि के मार्ग प्रशस्त करने के लिए उन्होंने विभिन्न प्रवचनों मशः रासो का महत्व, कृतियों का वस्तु सौन्दर्य, बाल्यान, कहानी, सवदी, काग, वसन्त, दोहा आदि के साथ साथ क्या कलियों का विस्तार में आलेखन कर आदिकाल की प्रापधारा को विशेष गति और वागी प्रबाग की है। इस प्रकार इतिहास से पृष्टभूमि लेकर दिववेदी जी मे आदिकालीन काव्य स्मों का पहिली बार वैज्ञानिक ढंग से परिचय किता है। विवेचनः हिववेदी जी का न्ध और प्रयास असाधारण है परन्तु नामकल सामग्री या समय निर्धारण के समय में आतोकों में कुछ म द अवश्य है। साथ ही जिन काव्य मो म दिववेदी जी ने परिकय सिा है उस उनके विकास की दिशश की और त मात्र ही हो पाया। विस्तार विश्लेषा नहीं हो सका। दिदी आदिकाल के इस भोज कार्य की पक शारा विशेष साहित्य विस्तृत विश्लेषण करने के कार्यको लेखक प्रस्तुत प्रकटपूरा करने का प्रयास किया है। राजस्थानी भाषा,पुरानी राजस्थानी, राजस्थानी भाषा और साहित्य: (1) राजस्थानी भाषा रावस्थाम विश्व विद्यापीठ प्राचीन साहित्य शेष संस्थान उदयपुर वर्गत पाकवि गळा, वासन दिप प उनके तीन पाय राजस्थानी भाषा मान सन् १९ पुस्तक में प्रकाश नीमार बटनी । राजस्थानी की पिया, राषस्थानी विहार, कि , मामाविबादि अध्यायों HAPTE Tो पाया कि डा. बटी
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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