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________________ दूसरी भाषाओं के अधिकारों को ध्यान मेरसते हुए हिन्दी को हिन्दी तथा अपभ्रंश को अपभ्रंशकहनाही ज्यादा न्यायसंगत होगा। (१६) हिन्दी साहित्य का इतिहासः (0) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी द सागर की भूमिका के रूप में मन् १९२९ में हिन्दी साहित्य का क्रमबद्ध इतिहास प्रस्तुत किया। वास्तव में मिनबंधु विनोद की भाति यह रववृत्त संग्रह नहीं था। पहली बार पुल जी हिन्दी साहित्य के इहिास को विभिन्न माह कारों से मुक्त किया तथा हिववेदी जी के शब्दों में इसमें मानव के जीवन्त विचारों का स्पन्दन पहली बार सुनाई पड़ा। विवेचनः आदिकाल की दृष्टि से यह कृति अस्त उपादेय वो अबर है परन्तु सामग्री अभाव के काल उक्ल जी ने अपज काल और देशी भाषा नामकरण करके कई अप्रामापिक रचनामों को स्थान दे दिया है। वास्तव में सामग्री के अभाव में शुक्ल जी को एतदर्थ दोषी ठाराना समीचीन नहीं होगा। शुक्ल जी ने तत्कालीन उपलब्ध लगभग समस्त साहित्य का दर विजन प्रस्तुत किया है। यद्यपि बादिकाल की सामग्री, मामकरण क्या सम के प्रश्न उसमें पीप्रश्न ही बने हुए है। जिन पर इसी अध्याय के प्रारम्भिक पृष्ठों में विचार कियाणा चुका है। ( हिन्दी साहित्य के इतियों के कप में आदिकाल के सम्बन्ध में सामग्री प्रस्तुत करने वाले प्रबो में शिवसिंह भरोष, मि बिनोद, गार्च मियन का मार्डन वाक्यूलर लिटरेचर माफ मार्दन न्दुिस्थान प्रथा डा. राम कुमार वर्मा का हिन्दी साहित्य का मालोचनात्मक इतिहास या भाषा हिवदेवी बी का हिन्दी साहित्यि एवं हिन्दी साहित्य की भूमिका बाविन्य प्रमुख है। इन ग्रन्थों की संगति मावि स आदिका मामला सामग्री आदि पर चर्चा करते पुमन विचार विर्य किया था । (0/- हिन्दी साहित्यका बादिला ािर राप भाषा परिषद पटना मे सन् १९५९ मावार्य डा. मारी प्रसाद डिववेदी मे + प्रवचनों को इस ग्रन्थ प्रकाशित किया कि भावार्य शिववेदी का बााित पर बवावर उपाय मम सभी ग्रन्थों
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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