SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७ स्पष्ट हो सके। प्रथ के पीछे ४ परिशिष्टों में सहायक ग्रन्थ, कवियों का काल क्रम और उनकी रचनाए, देहाती और तद्भव शब्द तथा समसामयिक राजवंशों की विस्तृत नामावली जोड़ दी है। जिससे कृति के अन्तरंग बहिरंग तत्वों की पुष्टि हो सके। रचनाकार ने इसमें आठवीं शताब्दी सेही सिद्ध अजैन, जैन, बौद्ध आदि सभी कवियों को लिया है तथा उनके काव्यों के उद्धरणों को विविध शीर्षकों में मटकर पद्यात्रों में वैज्ञानिक निष्कर्थी का समावेश कर दिया है। विवेचन :- परन्तु एक सबसे बड़ी असंगति हिन्दी काव्य धारा की दिखाई पड़ती है और वह यह है कि राहुलजी ने विज्ञध अप के कवियों को भी हिन्दी का कहकर उनको हिन्दी में स्थान दिन है। उदाहरणार्थ स्वयंपू, हेमचन्द्राचार्य, अनुदुर्रहमान, सरमा, शवरपा, पुष्पवंय, योगीन्दु मकबर, कनकानर पुनि हरिहर लक्षण, अज्जल मादि। वास्तव में ये कवि दूध अपप्रेर के हैं तथा इनको हिन्दी में स्थान देना कठिन और असम्भव दोनों है। आज जबकि अपभ्रंश, उत्तर अमत्र और पुरानी हिन्दी के बद रूप तथा ध्वनियों का समग्र अध्ययन प्रस्तुत कियाजा रहा है, राहुलजी की प्रस्तुत कृति को देखकर अप की इन कृतियों का मूल्यांकन हिन्दी कहकर fee जाने का विचार संगत और युक्ति युक्त नहीं कहा जा सकता। क्योंकि देशी seerat की इतनी अधिक कृतियां मिल जाती है विपद और उनके बीच में विभाजन रेखा सरलता से बींची जा सकती है। यह बात दूसरी है कि अप की इन कृतियों में हिन्दी मात्रा को देने के प्रभूत तत्वों का समावेश है। राहुलजी के कथन में दूसरी संगति यह कि एक ओर होने को हिन्दी कहते हैं और दूसरी ओर उसे लगभग सभी प्रादेशिक भाषाओं की सम्मिलित निधि बतलाते है। स्वयं आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का भी स्थान है कि अब को पुरानी हिन्दी कहने का विचार माया वास्त्रीय और वैज्ञानिक नहीं है। अतः राहुलजी ने एक ओर तो अप कोसी गाeाओं का सम्मिलित निधि मानते है परन्तु दूसरी ओर उम्र पर हिन्दी का ऐसा एका चिमत्व स्वीकार करते हैं किसे पुरानी हिन्दी का है, वो है। जन्म वास्तव मैराकी का यह हिन्दी प्रेम रानी है फिर भी हमें यहा
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy