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उत्तर अपके ग्रन्थों के उद्धरण प्रस्तुत किए हैं। साथ ही हेमचन्द्र, पाणिनी, कुमारपाल चरित, देशी नाम माला आदि अनेक ग्रन्थों पर प्रकाश डाला है। गुलेरी जी का यह कार्य रोष की दृष्टि से एक भील स्तम्भ है। पुरानी हिन्दी नाम देकर गुलेरी जी ने पुरानी बंगला पुरानी गुजराती, पुरानी राजस्थानी पुरानी मराठी आदि प्रयोगों का प्रम दूर कर दिया है। देशी भाषामों के इतिहास का अध्यक् परिचय कराने में पुरानी हिन्दी ने अपूर्ण योग दिया क्या आदिकाल के इस महत्वपूर्ण प्रश्न को पुलमा कर, तमसान्न मार्ग को प्रकाश देकर प्रशस्त किया है। रखना अपने में साग पूर्ण क्या उस्कृष्ट है। हो सकता है कि लोग गुलेरी जी के विचारों में सहमत न हों, परन्तु यह तो दूसरी बात हुई। वास्तव में यह निना है कि पुरानीहिन्दी गुलैरी जीकी आई शौध है। (१५- हिन्दी काव्य धारा:
महापन्दित राहुल सांकृत्यायन के सन १९४५ में किसान महल इलाहाबाद में प्रकावित की है। सालची का यह अन्ध गुलेरी जी की पुरानी हिन्दी की मावि अमाधारण है। विद्वान सम्पादक ने पुस्तक में प्रारम्भ में ५० पृष्ठों की विस्तृत अवतरणिका लिटी है तथा अनेक सभी बातों का परिकार धा निराकरण किया है। अपच भाषा को पुरानी हिन्दी रामी ने की का है और इस दृष्टि में ये मुरी की पी एकदम आगे बढ़ गये है। अपशको राहुलजी ने हिन्दी मगर से * केवल हिन्दी की ही निधि बाग है बल्कि उसे बंगला, गुजराती, मराठी, सिधी, उडिया, जानीरावधानी, माडी, चिली, पौवपुरी आदि भाषाओं की सम्मिलित निधि बनालाई है। हिन्दी काव्य धारा में कवि ने देशी भाषाओं
लि काव्यों की भूमि का बबन भूमिका में प्रस्तुत क्यिा है। जिससे रबमा के मूल तत्वों का अनुसरून स्पष्ट हो
पाक जी ने आठमी शताइदी से पी विधामन्य गुग के मन भाषा कवियों को लिया है। अफश को हिन्दी बतलाते अब उन्होल स्वयंपू को दी का प्रथम कवि सिप स्थिा है। सबसे प्रथम पूर्व मार्य इन कृतियों के पाउने सम्बन्ध में रानी में प्रसया का यह कि और भीर म्होंने उमर अक के भी अम्ब पुस्म कमियों का पाल दिया और दूसरी और उनकी हिन्दी शाया
मगदी अनिष्ट पाय