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ये समस्त लेख विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकात्रित हो चुके है। आदिकाल से सीधा सम्बन्ध रखने वाले विषयों पर यद्यपि इस ग्रन्ध में कोई निबन्ध नहीं है फिर भी भाविकाल से सम्बन्धित अनेकों उलझी प्रथियों को सुलमाया है। संस्कृत, प्राकृत, अपच भाषाओं के विविध जैन ग्रन्थों और उनके रचयिताओं का परिव्य और इतिहास प्रेमीजी ने को ही जोधपूर्ण दृष्टिकोण से उपस्थित किया है। इस रचना काजैन साहित्यपर शेष प्रारम्भ करने से पूर्व अध्ययन करना अत्यनिवार्य है। (1) हिन्दी जैन साहित्य का इतिहासः
जैन हितैकी के सम्पादक श्री पं० माथूराम प्रेमी ने इस छोटी सी कति को सन् १९१७ में प्रस्तुत किया। वास्तव में यह रचना सप्तम हिन्दी साहित्यमम्मेलन जबलपुर के लिए लिया गया एक निबन्ध है, जिसको लेखक ने जैन ग्रन्धरत्नाकर बम्बई से लोटी सी पुस्तिका कम में प्रकाशित किया है। प्रेमी जी ने प्रस्तुत कृति में। जैन साहित्यका महत्व, जैन साहित्य के अप्रकट रहने के कास, उपलबध जैन साहित्य के विस्य पर विचार,सामायिक साहित्य, जैनों द्वारा हिन्दी कीउन्नति की बेटा, जैन ग्रन्थ प्रकाशन संस्थाए, दिी का इतिहास हिन्दी का प्रारम्भ तथा
वी से कर ली शादी के हिन्दी जैन लेखकों की रचनामों पर प्रकार STOT है। क्या उनके एक एक उदधरन कार जैन साहित्य कीप्राचीनता को मिष किया है। रमना गेटी पर मारपूर्ण है। ना दिी के साहित्य के महत्व की और मित करने वाली विरोध स्नातकों को विा निर्देश हो सके। (१४)- पुरानी हिन्दी
अब कृषि श्री पर बनी गुती बी का नागरीप्रसारिणी पत्रिका भाग १ में पा सक विस्तृत निबन्ध है। मायाकृति२००५ में पुस्तक रुप प्रकाशित हुई। मुनरी व
प्रामाणिक पौध तथा अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उत्तर भयको पूरामी हिन्दी काने का सर्व प्रथम पास गुलेरी जीने किया। उन्होनि प्रस्तुत हि अपार रानी हिन्दी का का निर्णय, अपर की मान्यता, इरानी हिन्दी मामकरण का काम, और पुरानी हिन्दी की रस्नानों पर बाबा मिवावा लायकी पुरानी
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