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तर सैन्य छाडी रथ वाम डिउ, गोर्बुद बाली मनसाल फैडिउ तउ बाउ वेगि कुरु राउ उधर, अगस्ति भो मिधि ओमपीधर
जाणे फिरिया सीह रहई सीयाल, मातंग नई जैम मसा माल चिह्न पसे अर्जन बाण छूटइ, सन्नाह माहिई सर सीघ्र फटूई तुरंग मातंग स्थलि पाला, ते पार्थ ने वारिया पंसाला बापबली कौरव नीबि खेड करई शुरले बलबड चंड (६५) एकि ना रथ हया शव बैंड, बेलि बाढी रहिया बलखंड एकिना रथ तगा हब प्राग, तीह ना मिस करी एकिनाठा (७१)
गजेन्द्र कुमास्थल सीस डोड, कोइ हिंडोला जिम सीस डोलाई तुरंग मातंग तिं नीद्र घोरई न पक्षया नीलडी बगोरई (७८)
पकि ना घड पडयां इकि जोई धारता घड़ नरेन्द्र बिगोई 3 राउ इमोशन एवि भासद, हार हसी पडिड विरवासद
५ नारि कपि मर राज कोई काई सपिइ इह पार्य होई (1) इस प्रकार । वर्ष की इस अवधि में कवि ने विराट पर्व को युद्ध स्थल ही बना दिया है और अमावासी व माती पान्डवों को योधाओं के रूप में चित्रित किया है। कवि को प्रकृति वर्षम तथा अन्य कोमल अनुभूतियों की अभिव्यक्ति का जैसे कोई स्थल ही नहीं मिला ऐसा लगता है। बीच बीच में कवि ने पार्थ चिन्ता, पार्थ उवाच, मामेव उवाब, उत्तरो उक्ति, अर्थम रक्सि, बृहन्महावाक्य, वृहन्नड़ा सवाच, दुर्गाचा पाय उत्तरवाक्य, अर्जुन गिता आदि शीर्षकों के अन्तर्गत अन्टाक्तियों का उपदेश और नीति प्रधान वाक्यों के रूप में उपदेश देकर कृति के कई मामी वर्णन चातुर्व भाषा सारल्य और पदलालित्य का परिचय दिया है। कृषि बीर भाबि रसों का निवास है। पान्डवों की विजय होती इसी ईमानन्द कवि ने ऋति को समाप्त किया है। यह कृति अद्यावधि