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________________ ६४५ उपलब्ध सब निर्वेदात कृतियों में अपवाद है। • विराट पर्व जन भाषा काव्य है। इष्टानुतौ अर्थान्तरन्यासों, उदाहरण, अनुप्रासों और सुन्दर रूपकों के द्वारा कवि नै कति को उत्कृष्ट बनाया है। छंदों के रूप में इसकी देन असाधारण व अनूठी है। जन भाषा काव्य होने से कृति के उदाहरण अनेक तत्कालीन लेखकों ने उद्वत किए है और कई पंक्तियों में इसकी हाया है- कुछ उदाहरण दृष्टव्य है (१) माणिक्य चंद्र ने अपनी झुकराज कथा में इस उद्धरण को दिया है: इससे विराट पर्व को मिलाइए: देव दानव राउत राम देव ममलि न को सबराणउ डब नइ धरि जल वहि हरिचन्द भीलडी भरण लाघुमुकुन्दइ विराट पर्व : पाच पाण्डव रम्या इम द्रूपदी रही थाईय दासी देव दानव न राय न राग देव आगलि नकोइ सपराणउ राम लक्ष्मण महि पाडया, पाच पांडव विदेसि भमाडया ers घरिजल afsd हरचदिई, मालडि मरण लाच मुकुंदई १५वीं शताब्दी के श्रृंगार शतक में देखिए: श्रृंगारशतक! कमलने दलि सीतल साथरउ, कवि कोमल पत्रम पाथरज म करि सुकडि मूकडि, दूकडी, दवितु पेलि न डेलिन बापडी विराट पर्वः सथम सूकडि सहरि सीची पवण पूरिहिं बीजणी वीजीइ कमलने दलि साधर पाथरउ, मरड़ कीचक मम्मथ आफरत १- भारतीय विद्वयाः वर्ष ३ अंक १, पृ० २१०-२२३ तथा जी०ओ०ए०सी० १८४० ४ २. रूप सुंदर कथा: डा० पोमीलाल जी साडेसरा: भूमिका भाग पृ० ७ की पादटिप्पणी ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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