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________________ ६४२ आजि आविज निश छइकाली, जीह हो नड नचावई बाली हुईंय का मिनी म निरुपमी रहिउ भीम तमी मुख बीसनी बहुल मक्ष मनुक्ष मरे करी, गयउ सोडि कीचक सुंदरी भक्ष्य भोज्य सवि भी मि निहालि, खाय साससि करा मुखि बाली चाहि माहि मुहा मलिउ प्रीमि सीच कीचक कर मढ़ पीमि (५७) कवि ने पान्डवों के इस अज्ञातवास को नियति के बड के कारण ही स्वीकार किया है।अपनी इस कष्टजनक स्थिति को राम लक्षमण, हरिश्चन्द्र और कृष्ण की भील के हाथ मृत्यु आदि अन्तर्वथाओं द्वारा स्पष्ट किया है: पाच पान्डव रहया इम नासी, हुपदी रही थाईय दासी देव वाणव न राय न राउ, देव भागलि न कोइ सपरापठ राम लक्ष्मण मही इति पाडया, पाच पान्डब विदेसि भाड्या डूंब नईधरि जल बहिरिचं दिई, भालडी मरण लाच मर्कदिई उत्तराध में कवि ने युइधों का वर्णन किया है और इन पान्डवों के अज्ञातवास का भेद खोला है। कवि ने युद्ध की तैयारियों का वर्णन बड़े ही कौशल के साथ किया है। कवि ने अपने लोक अनुभवों को पीसाथ साथ उपदेशात्मक नीति वाक्यों के रूप में रक्सा है: एक बार परिसी जलजाइसात बार गुण जाणि पाइ जीमि पूड सदाफल होवई जेमि देसि जिण माणस मोडा जीह दाम हरिद्र म फेडइ राग शेक जीह लोक न पीडा पीमि देसि नृप हुइ सपरापर, तीपि देसि इहिब पान्डव बार अधों के वर्णन में, सैनिकों की सजा, वस्त्रों की सनसनाहट, योधाओं का शौर्य हाथी घोड़ों और सवारों का प्रतियोक्तिपूर्ण वर्णन कवि के कौशल का प्रतीक है: व बह मिली पार कापी, कल सीम पुरनी पु झापी रोभिराउ भक्ती परिगाड़, आज रे मई विराट कम ताजा इन्द्र भावण दोड असाहरी, सीह रहाई क्वा होइपारी सेक नाग फल कुंग कंपाबा भीम मैक्यम अश्व टपावर
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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